जीवांत जीवन (कविता) - डॉ राजीव डोगरा
बढते गए जीवन में तो
उड़ते रह गए
जीवांत पक्षी की तरह
नहीं तो टूट कर
बिखर जाओगे
किसी शाख के
मुझराये पते की तरह।
जीवांत
हो तो
जीना पड़ेगा
सूर्य चांद की तरह
नहीं तो पड़े रहोगे
शमशान की
जली बुझी हुई
राख की तरह।
जीवांत हो तो
महकते रहो
किसी सुगंधित
फूलों की तरह
नही तो मुझरा जाओगे
किसी टूटे बिखरे
फूल की तरह।
डॉ राजीव डोगरा,कांगड़ा हिमाचल प्रदेश
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