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रिश्तों का ताना-बाना (लघुकथा) -डॉ रमेशचन्द्र


रीमा ने अपने पति विहान से कहा - "यदि तुम चाहते हो कि अपने विधुर पिता को अपने साथ रखें, तो मेरा भी एक सुझाव है कि मैं अपनी विधवा मम्मी को भी अपने साथ रख लें..।"

विहान ने आश्चर्य से रीमा की ओर देखा। फिर बोला - "लेकिन यह कैसे संभव है रीमा? "

"वैसे ही संभव है जैसे तुम अपने पिता को रखना चाहते हो तो मेरी मम्मी को भी साथ रखने में क्या आपत्ति है? "

विहान उलझन में पड़ गया। पिता पर तो उसका रखने का अधिकार बनता है, परंतु अपनी सास को अपने- साथ रखने का तो कोई औचित्य ही नज़र नहीं आ रहा था। 

विहान ने अपने मन की उलझन को व्यक्त करते हुए कहा -"रीमा, यह संभव नहीं हो सकता, मैं अपने विदुर पिता को दूसरे शहर में अकेला और कितने दिन रखूंगा। आखिर वे मुझ जैसै कमाते खाते बेटे के पिता हैं। वे वृद्धावस्था में अपने बीमार शरीर को कितने दिनों तक असहाय अवस्था में रख सकते हैं।"

"मैं तुम्हारी भावना और कर्तव्यनिष्ठा को समझती हूं, लेकिन यही बात मुझ पर भी लागू होती है। मेरी विधवा और वृद्ध मम्मी अकेली दूसरे शहर में कितनी विवशता से रह रही है, यह मैं ही जानती हूं। काश, मेरा कोई भाई होता, तो आज मुझे यह कहने की आवश्यकता नहीं पड़ती। सोचो विहान, जो स्थिति तुम्हारे पिता के साथ है, वही स्थिति मेरे साथ है। यदि हम दोनों अपने अपने अहम् को लेकर उन दोनों को अकेला छोड़ कर अपना जीवन मौज़ मज़े से बीताते रहेंगें तो यह घोर कृतघ्नता होगी।"

"वो तो ठीक है रीमा, लेकिन ..!" विहान यह कह कर रूक गया। रीमा उसके चेहरे के उलझे भावों को पढ़ते हुए बोली - "देखो विहान, जिस तरह से तुम कमा रहे हो, उसी तरह मैं भी कमा रही हूं। हम दोनों बराबर अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं। यदि एक एक व्यक्ति की जिम्मेदारी हम और उठा लेंगे तो यह कोई कठिन और मुश्किल भरी भी नहीं होगी। उन दोनों वृद्धों को जीने का सहारा मिल जाएगा और उन्हें खुशी भी होगी कि उनकी बेटे-बेटी ने उनको इस कठिन अवस्था में जीने से बचा लिया। यह भी अच्छी बात है कि अभी हम दोनों हैं। कल से हमारे बच्चे होंगे तो उन्हें संभालने और उनका लालन -पालन करने में इन दोनों बुजुर्गों की हमें सहायता मिलेगी।"

विहान ने सोचा, रीमा की बात ठीक है। अपने अपने परिवार के सदस्य बनाने में कोई कठिनाई नहीं हैं, बस मन को उदार बनाने की आवश्यकता है। विहान ने आखिर मन ही मन निर्णय कर लिया। उसने मुस्कुरा कर अपना हाथ रीमा के कंधे पर रखा और कहा - "तुम ठीक कहती हो रीमा, हम अपने अपने अहम् को अपने बुजुर्ग की देखभाल करने और अपने साथ रखने के मामले में आने नहीं देंगे।"

यह सुन कर रीमा भी मुस्करा दी और बोली - "मुझे पता था कि तुम यही निर्णय करोगे..।"

-डॉ रमेशचन्द्र, इंदौर

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