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नेत्रदान (कविता) -संजय वर्मा 'दृष्टि'


मैने देखी ही नहीं
रंगों से रंगी दुनिया को
मेरी आँखें ही नहीं
ख्वाबों के रंग सजाने को

कौन आएगा ,आँखों मे समायेगा
रंगों के रूप को जब दिखायेगा
रंगों पे इठलाने वालों
डगर मुझे दिखाओ जरा
चल सकू मै भी अपने पग से
रोशनी मुझे दिलाओं जरा
ये हकीकत है कि, क्यों दुनिया है खफा मुझसे
मैने देखी ही नहीं

याद आएगा ,दिलों मे समायेगा
मन के मित को पास पायेगा
आँखों से देखने वालों
नयन मुझे दिलों जरा
देख सकू मै भी भेदकर
इन्द्रधनुष के तीर दिखाओ जरा
ये हकीकत है कि, क्यों दुनिया है खफा मुझसे
मैने देखी ही नहीं

जान जायेगा ,वो दिन आएगा
कोई तो मेरी व्यथा को समझायेगा
रंगों से खेलने वालों
रोशनी मुझे दिलाओं जरा
देख सकू मै भी खुशियों को
आँखों मे रोशनी दे जाओ जरा
ये हकीकत है कि, क्यों दुनिया है खफा मुझसे
मैने देखी ही नहीं

-संजय वर्मा 'दृष्टि',मनावर (धार)

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