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तलाश सच्ची खुशी की (कविता) - ललित शर्मा


तलाशने चले खुशियां, पर
कोसों दूर निकल पड़ी और
हुई चूर, जीवन में चकनाचूर सी
जीवन की खुशियां
मिलने जुलने की
रीत प्रीत बिना
हुई जीवन में अंधकार सी
जीवन की खुशियां
आज मानव भटकती जीवनशैली में
जीवन की मिलनसारिता के अभावों पर
अद्भुत द्रष्टा देता दर्शाता
अक्सर पूछता है खुद से
हूँ व्यस्त जरूर जीवनशैली में
कब कहाँ कैसे
किस मोड़ पर
मिलेगी सच्ची खुशियां
उदासीनता सी झुलसियां में
आपा-धापी के चकाचोंध
चेहरे में
मुस्कुराहटें ले ली करवटें
झलकती झुलसियां और उदासीनता
गुल बस हुई तो, बस
हृदयानंद की खुशियां
बांधे अनर्गल बोझ का सेहरा
गवांकर मौका सुनहरा
पूछता है मानव ओरों से
कहाँ छुपी है
कहाँ बिछुड़ी
जीवन की खुशियां
अनमोल खुशियां
जुटाने की हिम्मत
तलाशते तलाशते
अन्तर्मन से सिमटती
सिमट रही अनमोल
अन्तर्मन की खुशियां
प्रेम ममत्व अपनत्व की
तिलांजलि के चक्कर में
अब अवरुद्ध सी
खुशियों भरने की कला
संसार में तड़पता मानव
पाने को खुशियां
अब खुद करने लगा है जीवन में युद्व
जीवन मे खुशियां पाने को
भेदभाव तकरार की दीवार
आपस में हो जाये दरकिनार
समन्वय की रचना भरकर
स्वतः अन्तर्मन में खुलकर
खुशियां से खुलेगा
अन्तर्मन का द्वार
प्रेम स्नेह प्यार से
मानवतावादी की
गहराइयों के गीत में
खुशियां की बूंदों की बरसात
जीवन में हृदय पर
बस खुशियां ही
छोड़ती है अमित छाप
कवि, लेखक साहित्यकार
तपते लेखन की कला में,
और
रचते अन्तर्मन से
ह्रदयस्पर्शी ज्ञान की धार
रूचिवर्धक स्वाद भरकर
पाठकों को परोसते
पठनीय खुराक रसदार
संसार की सर्वोत्तम
पठनीय औषधि पर
साहित्यानुरागियों में
घूंटी कराते असरदार
पठनीय ज्ञान की पुस्तकें
एकाग्र बैठकर करते तैयार
अन्तर्मन में खुशियां उजागर कर
कविताएँ रचनाएं कहानियों का
भरते रहते अनन्त भंडार
भीतर में भरें हरदम यह विचार
श्रेष्ठतम समयोपयोगी
लेखन रचनाओं से
करते रहे सदैव उत्तम व्यवहार
बनाएं समाज में जीवन ऐसा
खुशियां भरते भरते
साहित्य का भरते रहे
अनन्त अनमोल संसार

-ललित शर्मा, असम

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