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उस जनता की खाल (दोहे) - रमेश मनोहरा


जाने नहीं ग़रीब की, उसकी कोई पीर
खाई सभी ने मिलकर, उसकी सारी खीर

नेता जनता से करें, वोटों का ही मोल
फिर पांच साल तक रहे, जनता से वो गोल

चुनाव पर नेता सदा, झुकाए जनता माथ
यदि जीत गया वो करें, उससे दो दो हाथ

नेताओं की जेब में, रहता है कानून
आमजन का वो करता, हरदम देखो ख़ून

नेता नित चलता यहां, नई नई वो चाल
तरकीब से उतारता, उस जनता की खाल

जिसने भी बनती नहीं, रखता उनसे बैर
फिर उनके वो सामने, बने है सवा सैर

चुनाव के पहले करें, तैयार वो जमीन
नेता है वो देश का, दिखलाए नये सीन

जितने नेता हैं यहां, उतनी देख दुकान
कुछ तो इंसान रखते, बाकी बेईमान

कुर्सी पाकर देख वे, जतलाते अधिकार
जो उनकी पूजा करें, करते है उपकार

समस्याओं का लग गया, देखो ये अंबार
हल करना अब तो हुआ, रमेश जी दुश्वार

-रमेश मनोहरा, जावरा

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