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पुलकित हृदय से निसृत काव्य हृदय को झंकृत करता है

राष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक मंच की सरस काव्य गोष्ठी संपन्न


भोपाल। अखिल भारतीय वरिष्ठ नागरिक काव्य मंच की मध्यप्रदेश इकाई की अध्यक्ष जया आर्या की अध्यक्षता, अमेरिका से पधारे डॉक्टर शिववरन रघुवंशी के मुख्य आतिथ्य, गोकुल सोनी के सारस्वत आतिथ्य और वरिष्ठ लेखक सुरेश पटवा की विशिष्ट उपस्थिति में वनवासी कल्याण परिषद हॉल में संपन्न हुई। जया आर्या ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में मंच का संक्षिप्त परिचय दिया और “मन की प्यास बुझा दो” कविता का पाठ किया।

पेशे से वैज्ञानिक डॉक्टर शिववरन रघुवंशी ने मुख्य अतिथि के रूप में सभी रचनाकारों का उत्साह वर्धन करते हुए “बारिश की बूँदों” कविता को सराहते हुए कहा कि यह कविता मन में गहरी उतर जाती है। उन्होंने देश की वर्तमान स्थिति पर रचना सुनाई। गोकुल सोनी ने सारस्वत अतिथि की आसंदी से संबोधित करते हुए कहा कि रचनाकार को लोकहित में पंथ और विचारधारा निरपेक्ष होना चाहिए।

काव्य गोष्ठी में विशिष्ट रूप से उपस्थित वरिष्ठ लेखक सुरेश पटवा ने उपस्थित रचनाकारों को संबोधित करते हुए कहा कि “संगीत आत्मा को मुदित करता है, गद्य मानसिक अभिव्यक्ति है तो पुलकित हृदय से निसृत काव्य हृदय को झंकृत करता है।”

कार्यक्रम का आरम्भ अतिथियों के स्वागत उद्बोधन और पुष्पहार द्वारा अभिनंदन से हुआ। श्यामा गुप्ता ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। जया आर्या ने स्वागत उद्बोधन में अतिथियों की खूबियों से रचनाकारों को परिचित कराया। गोष्ठी के संयोजक वीरेंद्र कुमार श्रीवास्तव ने उत्तम व्यवस्था में कोई कोताही नहीं बरती। कविता सिरोले ने ना सिर्फ़ गोष्ठी का सफल और सरस संचालन किया बल्कि “हमारी आस्थाएँ पतन की पताका फहरा रही हैं” कविता सुनकर विभोर कर दिया।

गोष्ठी में नगर के वरिष्ठ रचनाकारों ने रचनाएँ प्रस्तुत कीं। शिवांश सरल ने “द्वन्द युद्ध उठता अकुलाता सदा नारी मन में”, सुनीता केशवानी ने “बारिश की बूँदीं ने लिखी कविता खिड़की के शीशों पर”, बिहारी लाल सोनी ‘अनुज’ ने “सोये भाव जगा सकती है, अम्बर में आग लगा सकती है”, सरोज लता ने “हम तो पुतले फूंक रहे हैं ज़िंदा रावण घूम रहे हैं”, ऊषा चतुर्वेदी ने “पाँच साल में आता है प्रजातंत्र का पर्व”, श्यामा देवी गुप्ता ने “चल पड़ी चुनावी हवा”, करुणा दयाल ने “एक दिन बोला चाँद सूर्य से”, वीरेंद्र श्रीवास्तव ने “मैं आश्चर्यचकित था अंधेरा उजाले के गले में हाथ डाले घूम रहा था”, मृदुल त्यागी ने “ईश्वर की संतान है ये इनकी दुनिया न्यारी है”, सुषमा भसीन ने “आज का दिन हम सबके लिए कुछ विशेष है”, मधुलिका सक्सेना ने “धरणी की देहरी पर बार आई दिया एक”, विद्या श्रीवास्तव में “मेरी फ़ितरत में क्या है मैं दिखाती रही हूँ”, दुर्गा रानी श्रीवास्तव ने “दान वीरों की धरा है हमारी भारती”, गीतकार सीमा हरि शर्मा ने “धोखे मिलते हैं अक्सर विश्वास के ठेकेदारों से”, हरि वल्लभ शर्मा ने मन की शुद्धि पर “ओढ़कर बैठे हो राम का ब्रह्म आवरण” के बाद शोहरत मिली तो मगरूर हो गये” ग़ज़ल सुनाई। कुमकुम सिंह में “यूँ ना इल्ज़ाम ए वफ़ा देखिए” सुनाई। अंत में श्री वीरेंद्र श्रीवास्तव ने सभी का आभार व्यक्त किया।
(श्रीराम माहेश्वरी)

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