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नवरात्रि नौ माता स्तुति


तेरा हर नाम तेरे दैवीय तेजस्विता का है परिचायक।
प्रथम ईश्वरीय स्वरूप शैलपुत्री है अति सुखदायक।।
दैवीय चेतना के सर्वोत्तम उत्तुंग शिखर की अनुभूति।
प्रथम दिवस पूजन प्राणियों को दे चरम सुख समृद्धि।

महा तपस्विनी देवी दुर्गा जन जन कष्ट निवारिणी।
दाहिने कर धरे माल वाम हस्त कमंडल धारिणी।।
पावन नवरात्रि द्वितीया परम पूज्य भव तारिणी।
ज्योतिर्मय अतिभव्य रूप नमन हे माता ब्रह्मचारिणी।।

सिंहवाहिनी कष्टहरणी, शरणागतवत्सल तुझ सा न दूजा।
सौम्या तेजस्वी माँ चंद्रघंटा, मन प्राणों से करूँ तेरी पूजा।।
मनसा वाचा कर्मणा संग ये, तन तव चरणों की करे भक्ति।
इहलोक में करूँ कल्याण, परलोक में देना तू सद्गति।।

बिन ब्रह्मांड शून्यता व्याप्त चहुंदिश विस्तीर्ण थी तमिस्त्रा।
ऊर्जा उष्मा स्त्रोत की उत्पत्ति कर कहलाई कूष्मांडा पवित्रा।।
ब्रह्मांड सृजेता तू है आदिशक्ति माँ तू सूर्य पथदर्शिनी।
सकल जीवकल्याणी माता हे अष्टभुजा धारिणी।।

दाहिने कर सुत स्कंद सहेजे दूजे कमल को धारे।
बांये हस्त दे आशीष दूजा हस्त पंकज से संवारे।।
चतुर्भुजा पद्मासना शुभ्रा जय हो तेरी स्कंदमाता।
तेरी भक्ति मोक्षदायिनी प्राणी भव सागर तर जाता।।

त्रिदेव ऊर्जा संग प्रादुर्भूत हुई तू है शुचि प्रकाशपुंज।
महान कात्यायन ऋषि की पुत्री कहलाई कात्यायनी।।
खड्गधारिणी धर्म अर्थ काम और मोक्ष की देवी।
सुवर्ण आभायुक्त है तू हे महिषासुर मर्दिनी।।

श्याम वर्णी मुक्तकेशा देवी काली तू गर्दभवाहिनी।
त्रिनेत्री तू चतुर्भुजा त्रैलोक्य भयमुक्तिदायिनी।।
हे कालरात्रि! शुभंकरी गल विद्युत मालाधारिणी।
नमो नमःकल्याणी माता आसुरशक्ति विनाशिनी।।

वृषभारूढ़ा भगवती श्वेता श्वेतवसना महगौरी माता।
पूजें सभी देव नर दानव तू सर्वसृष्टि कल्याण प्रदाता।।
मस्तक चन्द्रकिरीट सोहे सर्वदा भक्तों के तू कल्मष निवारे।
माँ तेरी रूप द्युति सम्मुख हमने निज मन प्राण हैं वारे।।

नवरात्रि नव रूप तेरे माँ जग को सुख-समृद्धि दिलाते।
नवरात्रि के अंतिम दिन तव चरणों में शीश नवाते।।
तेरी पूजा अर्चना ही है सुर नर मुनि की सर्वसिद्धि दात्री।
तभी तो जग में कहलाती जगदम्बे दुर्गे माता सिद्धिदात्री।।

-रंजना माथुर, अजमेर राजस्थान

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