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नित नव अंकुरण


विषम पथ
गढ़ पगडण्डी
कर सृजन बन पथिक
अनवरत
चल....
और चल
सदा चल
बह कल-कल अविरल
नवसाधक बन
स्व अंकुरण
कर नित
अद्वित सृष्टि सृजन....'

-डॉ सुरेन्द्र मीणा, नागदा (म.प्र.)

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