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कविता
नित नव अंकुरण
नित नव अंकुरण
शब्द प्रवाह
अक्टूबर 08, 2023
विषम पथ
गढ़ पगडण्डी
कर सृजन बन पथिक
अनवरत
चल....
और चल
सदा चल
बह कल-कल अविरल
नवसाधक बन
स्व अंकुरण
कर नित
अद्वित सृष्टि सृजन....'
-डॉ सुरेन्द्र मीणा, नागदा (म.प्र.)
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