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सांस्कृतिक पुनर्जागरण करने के लिए आत्मबोध को जागृत करना आवश्यक


भोपाल। विभिन्न कारणों से हमारी ज्ञान परंपरा समाप्त हुई है, हमें एकजुट होकर अपने प्राचीन ज्ञान को वापस लाना है। श्रुति, स्मृति, साहित्य के रूप में हम पर जो ज्ञान है उसका अध्ययन करने के लिए जो भाषा है हम उसमें पारंगत हों। भारत के आत्मबोध को जागृत करना हमारा उद्देश्य हो। हम सभी मिलकर समाज में लोकशक्ति का जागरण करें। सांस्कृतिक पुनर्जागरण के लिए वर्तमान में सातत्य के साथ साधना करना चाहिए। यह बात सामाजिक कार्यकर्ता हेमंत मुक्तिबोध ने 'सांस्कृतिक पुनर्जागरण: महत्व एवं हमारी भूमिका' विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में कही। वह अर्चना प्रकाशन की स्मारिका "अमृतकाल में सांस्कृतिक पुनर्जागरण" के विमोचन के अवसर पर बोल रहे थे। कार्यक्रम में विशिष्ट वक्ता पुरातत्वेत्ता पूजा सक्सेना, अध्यक्ष अशोक पाण्डेय थे।

उन्होंने कहा हमारे देश को तोड़ने के लिए वर्षों से नकारात्मक नैरेटिव सेट किए हैं। हिंदुत्व, हिन्दू संस्कृति को जातियों के आधार में बाँट दिया। हमें इससे मुक्त होने की आवश्यकता है। मुस्लिम आक्रान्तों के आने पर हमारे विश्वविद्यालय व ज्ञान केंद्र नष्ट हुए, इसके बाद से हम उपनिवेश की मानसिक दासता के शिकार हुए। हम सभी नई पीढ़ी को असल भारत की बात पहुंचाएं, इससे उनमें आत्मबोध जागृत होगा। भारत में सांस्कृतिक पुनर्जागरण करने के लिए आत्मबोध को जागृत करना हमारा उद्देश्य होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि आदि शंकराचार्य द्वारा भारत के अंदर राष्ट्रीय चेतना के पुनर्जागरण हेतु धर्म, साधना के माध्यम से सांस्कृतिक तंतुओं के माध्यम के एकत्रित किया। उन्होने समाज जागरण हेतु देश भर में घूमकर कर्म योग की स्थापना की। ज्ञान, कर्म, भक्ति ही सांस्कृतिक पुनर्जागरण के लिए आवश्यक है। वर्तमान में सांस्कृतिक पुनर्जागरण के लिए हुए मंदिरों के निर्माण इत्यादि का महत्व बताकर उन्होंने काशी लोक, महाकाल लोक, जगह-जगह तैयार हुए मंदिर, करतारपुर कॉरिडोर इत्यादि का निर्माण होने से सांस्कृतिक पुनर्जागरण में गति मिलने की बात कही। वे बोले समाज को स्वयं में सांस्कृतिक दृष्टि में सकारात्मक परिवर्तन लाकर कार्यों को प्रधानता देनी चाहिए। हम सभी को लोकशक्ति का जागरण करना जरूरी है।

दोस्त मोहम्मद ने नहीं बनवाया था फतेहगढ़ का किला: पुरातत्वविद पूजा सक्सेना


कार्यक्रम में विशिष्ट वक्ता पुरातत्वेत्ता पूजा सक्सेना ने भोपाल की सांस्कृतिक पृष्टभूमि पर बोलते हुए कहा कि भोपाल का इतिहास सिर्फ 200 वर्ष पुराना नहीं है। आज से हजारों वर्षों पुरानी हमारी सभ्यता यहाँ मिली है। वर्षों पुराने भीमबैठक, ताम्रपाषाण पत्रिकाएं इत्यादि यहाँ हैं। ऐशबाग स्टडियम में लगा स्तम्भ की स्थापत्य शैली मौर्यकालीन है जो कि 2300 वर्ष पुराना है। 1500 वर्ष पुरानी लिपि इस पर अंकित है।

उन्होंने कहा कि भोपाल ओमवैली पर बसा हुआ है। राजाभोज ने ओमवैली को मंदिर की जगती के रूप में बना दिया था। भोज ने पूरी वैली पर मंदिर बसाने का कार्य किया। भोपाल और उसके आसपास अब भी कई मंदिरों के होने के प्रमाण मिलते हैं। राजा भोज ने 9 नदियों को मिलाकर भीमकुण्ड बनवाया था जो कि वर्तमान के भोपाल के बड़े तालाब सामने काफी बड़ा था। इसे भरने में 5 वर्षों का समय लगा। उन्होंने देश-दुनिया में भोज की हाइड्रोलॉजी की सराहना की।

फतेहगढ़ के किले के बारे में फैले भ्रम पर वह बोलीं कि फतेहगढ़ का किला दोस्त मोहम्मद ने नहीं बनवाया यह पहले से बना हुआ है। वहां उपस्थित ढाई सीढ़ी की मस्जिद असल में सैनिकों के विश्राम का स्थल था। विदिशा से नर्मदापुरम की ओर जाने पर अनेक स्थल, गोण्डारमऊ महर्षि पतंजलि की तपोस्थली है, सांची, उदयगिरि, प्रतिहार कालीन मंदिर आशापुरी में 23 मंदिर इत्यादि भोपाल के क्षेत्र में रहे हैं। उन्होंने कहा भोपाल के कामलापर्क, शीतलदास की बगिया, में मिले साक्ष्यों के आधार पर कह सकते हैं कि परमार काल का मंदिर रहा होगा। उन्होंने होशंगशाह और दोस्त मोहम्मद द्वारा भोपाल को नष्ट करने वाले विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की।

बौद्धिक जगत में प्रहार से बचना हमारी जिम्मेदारी: पाण्डेय

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पूर्व न्यायाधीश अशोक पांडेय ने बौद्धिक जगत में प्रहार करने वालों की हरकतों से परिचित कराया। उन्होंने जेम्स स्टुअर्ट विल, मैकाले आदि द्वारा देश में भ्रम फैलाने की बात पर प्रकाश डालते हुए उनके ऊपर सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा अंग्रेजों के समय में मन को दूषित करने का कार्य किया गया। हमें, हमारी मान्यताओं को समाप्त करने, ज्ञान परम्परा में गलत तत्व जोड़ी गयी जिसके कारण हम अपनी संस्कृति से दूर हो गए। हमें सांस्कृतिक पुनर्जागरण के लिए अपनी संस्कृति से जुड़ने, गर्व करने व जानने की बात पर जोर देते हुए आने वाली पीढ़ियों को सौंपना है। अपनी बात में उन्होनें हिन्दू पॉलिटि, हिन्दू केमेस्ट्री आदि पर प्रकाश डाला।

अर्चना प्रकाशन की स्मारिका "अमृतकाल में सांस्कृतिक पुनर्जागरण" का विमोचन के लिए आयोजित इस कार्यक्रम में स्मारिका में लेखन करने वाले लेखकों का सम्मान किया गया। कार्यक्रम का संचालन विभोर श्रीवास्तव एवं आभार न्यास के अध्यक्ष लाजपत आहूजा ने किया।

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