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करवा चौथ का चांद


आइना भी रश्क करने लगा
मेरा रूप जब निखरने लगा
सोलह श्रृंगार कर जब आई
चांद शरमा,आहें भरने लगा।

पिया भी देखे तिरछी नजर से
मेरा रूप जो दिल उतरने लगा।
वो थे हैरान ना कर पाए पहचान ।
स्वर्ग की अप्सरा मुझे कहने लगा।

देख कर मादक मेरी मुस्कान
लंबी सांस ले बाहों में भरने लगा।
मैने भी किया समर्पण, उसके सीने में सिमटी
ढलती उम्र में षोडशी वो मुझे कहने लगा।

वारी जाऊं मैं पिया की 
जिससे है संसार मेरा
घर आंगन खुशियों से महकता 
सुखी रहता परिवार मेरा

सभी अप्सराएं छतों पर
आसमानी चांद दीवानी थी
मेरा चांद ले गलबहियां चूमें,
मैं तो उसकी महारानी थी।

करवा चौथ न केवल मेरा, 
मेरी हर शाम रात सुहानी थी
सदियों जिंदा रहे प्यार हमारा, 
मैं बस पति दीवानी थी।

यही दुआ है शैली की, 
सब का सुहाग बना रहे
सजी रहें स्त्रियां सारी, 
स्वर्ग धरती पर बसा रहे।

-डॉ सुशील शैली, दिल्ली

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