म.प्र. साहित्य अकादमी भोपाल द्वारा नारदमुनि पुरस्कार से अलंकृत

डांडिया (लघुकथा)


अरे वाह ! तेरा जन्मदिवस तो इस बार नवरात्र में ही आ रहा है। बता तुझे अपने नौवें जन्मदिन पर क्या उपहार चाहिए मेरी गुड़िया रानी। कहीं घूमने जाना है या पसंदीदा भोजन करने की इच्छा है ? बेटी - नहीं मांँ ! इस बार मैं सोच रही हूंँ कि ये जन्मदिन कुछ हटकर मनाया जाए। मैं चाहती हूंँ कि केक न काटकर उसकी जगह रंग-बिरंगे डांडिया बाजार से लाऊंँ और उन बालिकाओं को भेंट दूंँ जो गरबा देखने तो आती हैं मगर डांडियों के अभाव में खेलने से वंचित रह जाती हैं। नन्ही बालिका की इस सुन्दर सोच के आगे माँ अवाक् रह गई। दिनभर एक अलग ही गर्वानुभूति से उसका मन भरा रहा...।

-यशपाल तंँवर,रतलाम

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