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भूख का सच (कविताएँ)


(1)
सड़क पर
बैठा भिखारी
जिसके पास है
कटोरा , फटे कपडे
तपती गर्मी की छतरी ,
ठिठुरन वाला कम्बल
वर्षा का सावर (झरना)
चिकनगुनिया
मलेरिया
भूख से तड़पता
आल्युमुनियम का गंदा कटोरा
सभी को देता चुनौती
बस भूख से करने को
एक एक हाँथ


(2)

आट्टालिकाओ से
रिसते ,
टूटते
झरते
संबंधों
विश्वासों
और
महत्वाकांक्षाओं को
स्थितप्रज्ञ की तरह
वह
देखता ,सुनता रहता है
रोज रोज
पर
वह जब भी करता है
प्रयास
भूख के सच को
जानने का
और करता है
रुख
आट्टालिकाओ की ओर
उसके अंदर का भूख
उसे कोसता है
फिर
वह भूखों की बस्ती से
निकल कर
फुटपाथ पर
आने को हो जाता है
विवस
जहाँ मिलती है
भूख को शांति


(3)

समाजवाद
साम्यवाद
साम्राज्यवाद
वादों और विवादों के
महासमर में
सम्यक दृष्टि
और
सम्यक दृष्टिकोण
जब करता है
अनुसंधान
सामाजिक न्याय का
फिर उसे
चिढ़ाता है
विकास और
समाज के
समरसता का
अविरल प्रवाह
जहाँ
जाति और वर्ग
सब तटस्थ
या मौन हो जाते हैं
फिर भूख
आतुर हो
करता है
अनुचित कार्य।

-अरविंद कुमार पाठक 'निष्काम', नागदा

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