Subscribe Us

माँ के नवरूप (लावणी)


पा कर शिव को शैलपुत्री ने, शिव का तब आभार किया।
माँ ने बन कर प्रथम शक्तिरूपा, स्वरूप साकार किया ।

बन तपस्विनी व्रत ले कर यह, बस शिव को ही वरण करूँ,
ब्रह्मचारिणी बनी देख शिव, ने सहर्ष स्वीकार किया।

घटता चन्द्र विनाशक रूपा, बढ़ता चन्द्र सृजनकर्ता,
धर नवरूप चन्द्रघण्टा जगती का जीर्णोद्धार किया ।

बनी सहचरी देवी तन में, ऊष्मा का संचार हुआ,
तभी रूप देवी कूष्माण्डा, धर कर जग परिचार किया।

स्कन्द कहाए कार्तिकेय तब बनी स्कन्दमाता देवी,
शंकर ! बनो अनुकूल संस्कृति, के उनसे मनुहार किया ।

कर पाए ना पुरुष पराजित, था महिषासुर को यह वर ,
देवाग्रह से रूप कात्यायनी का धर संहार किया।

बन कर कालरात्रि संहारा चण्ड-मुण्ड को, शान्त हुईं,
रूप महागौरी धारण कर , गृहणी का सुविचार किया।

करने पूर्ण ध्येय शंकर का, बनी सिद्धिदात्री माँ फिर,
सिद्ध किया अर्द्धांगिनी बनी, महादेव सहकार किया।

नवरात्र करें जगराता कर, ये प्रतीक जीवन के नौ,
माँ ने ही संस्कारों से है, हर घर का शृंगार किया।

-आकुल, कोटा

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ