आते- जाते ,कहते - सुनते रहता है।
इस तरहाँ वो मिलते-जुलते रहता है।
आना-जाना रख बादल,दरियाओं का,
सागर ठहरे हाल उफ़नते रहता है।
रोशन हो संसार सभी का यूँ अक्सर,
सूरज सालों-साल सुलगते रहता है।
राह कहीं ठहरे पेड़ों की छाँहों में,
चलते - चलते राही तकते रहता है।
रखता है आभास सभी के आने का,
जो क़दमों की आहट सुनते रहता है।
कहलाता है शख़्स वो सन्त, फ़क़ीरों सा,
जो दुनियादारी से बचते रहता है।
-नवीन माथुर पंचोली,अमझेरा धार
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