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माँ की सीख (लघुकथा)


इंगलिश मीडियम स्कूल में पढ़ने के कारण भावना कुछ अधिक मॉडर्न हो गई थी। मिनि स्कर्ट और जीन्स टॉप ही उसका पहनावा था। उसका इस तरह के कपड़े पहनना उसकी माँ शोभना को कतई पसंद न था। इस बात को लेकर वे हर समय उसे टोकती थीं कि बेटा ढंग के कपड़े पहना करो। पर माँ की बातों का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था।

एक दिन वह अपनी सहेली दिव्या के घर जा रही थी। निकलते वक्त माँ ने टोका- बेटा तुम्हारे कपड़े बहुत छोटे हैं जाकर बदल लो।

भावना ने तपाक से कहा -ओह माँ आप तो बिल्कुल ओल्ड फैशन हो, ऐसा कहकर वह स्कूटी में लेकर तेजी से निकल गई।

छुट्टी का दिन होने के कारण सड़क पर ज्यादा भीड़-भाड़ न थी। हां कुछ मनचले जरूर यहाँ-वहाँ घूमते नजर आ रहे थे। तभी तीन लड़के एक बाइक पर सवार होकर तेजी से आए और भावना के स्कूटर पास आकर अपनी बाइक घीमी कर उसे छेड़ने लगे। कोई रूमाल घुमाता कोई सीटी बजाता तो कोई कहता वाह क्या माल है’ ! यहाँ-वहाँ किसी को न पाकर भावना स्वयं को असहाय महसूस कर रही थीं।

तभी भावना के अविनाश अंकल जो कि स्थानीय कॉलेज में प्रोफेसर थे उसी समय अपनी कार में वहाँ से निकले। भावना को देखते ही उन्होंने कार धीमी की और पूछा-बेटा कहां जा रही हो ?

प्रोफेसर को देखते ही वे लड़के भाग गए। अंकल मैं अपनी फ्रेंड के यहाँ जा रही थी। देखिए न ये लड़के मेरे पीछे ही पड़ गए हैं भावना बोली।

उन्होंने कहा चलो बेटा अभी घर चलो अकेली आगे जाओगी तो वे लड़के फिर तुम्हारे पीछे आकर तुम्हें तंग करेंगे। ऐसे उदंड लड़कों से उलझना व्यर्थ है। उन्होंने कार बैक करते हुए कहा- चलो मैं तुम्हारे साथ-साथ घर तक चलता हूं।

जी अंकल कहते हुए भावना भी घर आ गई। काल बैल की आवाज सुन शोभना बाहर आई और दरवाजे पर भावना को देखते ही बोली- अरे बेटा इतनी जल्द आ गईं

माँ को देख उसे रोना आ गया। वह रोते हुए बोली- माँ रास्ते में मुझे अकेली देख कुछ लड़के मेरा पीछा कर रहे थे और अनाप-शनाप बोल रहे थे। तभी अविनाश अंकल वहां से निकले। उन्हें देखकर लड़के वहां से भाग गए। मैं यहाँ तक अंकल जी की कार के आगे-आगे ही आई हूँ।

भावना को प्यार से समझाते हुए शोभना ने कहा- बेटा मैं तुमसे बोलती थी न कि अपने विचारों में आधुनिकता लाओ पर वेशभूषा सादगी पूर्ण रखो, ताकि कोई तुम्हें अपमानित न कर सके और अपशब्द न बोल सके।

ओह माँ ! कहते हुए भावना माँ से लिपट गई। उसे आज माँ की सीख समझ में आ गई थी।

-डॉ. संध्या शुक्ल ‘मृदुल’,मंडला (म. प्र.)

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