नवरात्री के दिनों में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्तियों में वृद्धि के लिए संयम की साधना करते हैं, उपवास रखते हैं, भजन, पूजन और योग साधना भी करते हैं। कहा जाता है कि इन नौ दिनों में दुर्गा सप्तशती का पाठ, हवन और कन्या पूजन अवश्य करना चाहिए। वैसे तो हमारे देश में कन्या पूजन सदियों से चला आ रहा है लेकिन क्या एक दिन कन्या पूजन करने के बाद नारी जाति के प्रति पुरुष वर्ग के कर्त्तव्य और भावनाएं समाप्त हो जाती हैं और दूसरे दिन ही वे उसके लिए राक्षस बन उसे नोंचकर खाने और फिर जिन्दा जलाने में तनिक भी संकोच नहीं करते। क्या यही है कन्या पूजन की सार्थकता? आज देश में जो भयावह स़्थितियां बनी हुई है, उन्हें देखकर क्या हम कह सकते हैं कि हमारी कन्याएं समाज में सुरक्षित हैं? आज किस तरह के कन्या पूजन की जरूरत है? हम ऐसा क्या करें कि हमारी बेटियां सुरक्षित रहें और निर्भयतापूर्वक अपना जीवन जी सकें। हम कन्या पूजन किस रुप में करें, परम्परागत रूप में या आधुनिक रूप में।
कन्या भ्रूण हत्या का त्याग
नवरात्रि में कन्या पूजन का विधान है। अनेक लोग इन दिनों में माता के नौ रूपों के प्रतीक के रूप में नौ कन्याओं की पूजा करके उन्हें यथाशक्ति उपहार और दक्षिणा प्रदान करते हैं और उनका आशीर्वाद लेते हैं।
अगर हम ये सब दिखावे के लिए करते हैं तो ऐसा करना व्यर्थ है। क्योंकि एक दिन कन्या पूजन करके दूसरे दिन अगर आप अपनी ही कोख में पल रही कन्या के भ्रूण की हत्या करते हैं तो आपका कन्या पूजन करना व्यर्थ है। क्योंकि एक आदमी के जैसे ही अगर सभी सोचने लगे और करने भी लगे तो कन्याएं भी नहीं रहेंगी और जब कन्याएं ही नहीं रहेंगी तो पूजन किसका करोगे? यह पूजन सही मायने में तभी सफल होगा जब आप अपने घर में अपनी बहन और बेटी का सम्मान करेंगे, उसके सुख-दुख का ध्यान रखेंगे। उसे आगे बढ़ने और विकास करने का मौका देंगे।
कन्या शिक्षा को प्राथमिकता
इस नवरात्रि में हमें यह संकल्प लेना है कि हम अपनी कन्याओं की सही परवरिश तो करेंगे ही, उन्हें शिक्षित करके आत्मनिर्भर भी बनाएंगे, ताकि वे भविष्य में आने वाले हर तूफान का डटकर सामना कर सकें। उन्हें सिर्फ इस तर्क के आधार पर आगे बढ़ने से नहीं रोकेंगे कि वे लड़कियां हैं। जब हम उनके शारीरिक, मानसिक और शैक्षिक विकास का पूरा ध्यान रखेंगे तो कामयाबी स्वत: उनके कदम चूमेगी और तब आप गर्व से कह सकेंगे कि यह मेरी बेटी है।
इतिहास गवाह है कि जिन-जिन परिवारों ने अपनी बेटियों का समर्थन किया, उन्होंने हर क्षेत्र में अपने परिवार का नाम रोशन किया। फिर चाहे वो हमारे देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी हों या पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, प्रथम महिला अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला हो या मंगलयान मिशन की डिप्टी डायरेक्टर नंदिनी हरिनारायण, 6 बार की वर्ल्ड बाॅक्सिंग चैम्पियन मैरीकॉम हो या 6 गोल्ड मेडल जीतने वाली हिमा दास, सभी ने यह सिद्ध कर दिया कि नारी केवल कोमलांगी ही नहीं, फौलाद जैसे इरादे रखने वाली कठोर चट्टान भी है। अपने इसी बुलन्द हौसले के साथ बछेन्द्री पाल ने एवरेस्ट पर सफलतापूर्वक चढ़ाई की, वहीं अरुणिमा सिन्हा ने अपने चट्टानी इरादे के साथ कठिन से कठिन स्थिति का सामना करते हुए अपने नकली पैर के साथ एवरेस्ट पर जीत हासिल की। दोनों ही ऐसा कारनामा करने वाली अपने क्षेत्र की प्रथम महिलाएं थीं। शिक्षा के बल पर ही किरण बेदी पहली आईपीएस ऑफिसर बनीं और इंदिरा नूई पेप्सिको की सीईओ। इस सूची में ऐसे अनेक और नाम जोड़े जा सकते हैं, जिनमें प्रमुख हैं- सानिया मिर्जा, पी वी सिंधु, सायना नेहवाल आदि। कहने का तात्पर्य यह है कि अगर कन्या पूजन को सही मायने में सार्थक करना है तो हमें बेटियों को शिक्षित करना होगा, उन्हें आत्मनिर्भर बनाना होगा।
दहेज प्रथा का विरोध
अगर हम चाहते हैं कि भविष्य में भी नवरात्रि में हम कुंवारी कन्याओं का पूजन करें तो इसके लिए हमें दहेज प्रथा का विरोध करना होगा। क्योंकि यही कुप्रथा हमारी बहन-बेटियों को कहीं जिन्दा जला रही है तो कहीं घर से बेघर कर रही है। आज़ भी हम उसी पुरातनपंथी सोच के शिकार हैं कि बेटे से ही वंशवृद्धि होती है और अगर बेटी हुई तो उसके लिए ढेर सारा दहेज जुटाना पड़ेगा। हमें इस मानसिकता को बदलना होगा। ये बात सही है कि आज बेटियों के मां-बाप को पहले उनकी शिक्षा पर और बाद में उनकी शादी पर बहुत पैसा खर्च करना पड़ता है। इसलिए बेटे के मां-बाप को चाहिए कि अगर उन्हें पढ़ी-लिखी और गुणवान कन्या से अपने बेटे की शादी करनी है तो दहेज का लालच छोड़ दें। अपने बेटे को अपने पैरों पर खड़ा करें, उसे दहेज की बैसाखी देकर कितने दिन खड़ा रख पाएंगे? आखिर तो उसे अपना घर चलाने के लिए स्वयं ही मेहनत करनी पड़ेगी। अगर बेटों के मां-बाप अब भी नहीं सुधरे तो वह दिन दूर नहीं जब उन्हें अपने बेटे की शादी रोबोट कन्या से करनी पड़ेगी। जब कन्याएं ही नहीं होगी तो बहुएं कहां से लाओगे?
अपने लड़कों को दें अच्छे संस्कार
दहेज प्रथा और स्त्रियों पर होने वाले अत्याचारों एवं अपराधों का उन्मूलन करने के लिए आवश्यक है कि मां-बाप अपने लड़कों को शुरू से ही अच्छे संस्कार दें। उन्हें महिलाओं की इज्जत करना सिखाएं। लड़के और लड़कियों की परवरिश में कोई भेदभाव न करें। उन्हें शुरू से ही इस बात का अहसास कराएं कि लड़का और लड़की दोनों एक समान हैं। दोनों के सहयोग से ही परिवार बनता है और दोनों में से किसी एक की कमी से परिवार और समाज पूर्ण नहीं होते। जैसे-जैसे वे बड़े होते हैं, उनकी गतिविधियों पर नजर रखें और इस बात का ध्यान रखें कि उनका फ्रैंड सर्किल कैसा है?
कन्या सुरक्षा का करें प्रण
जितना हम अपने आपको सभ्य समझते हैं और अधिक से अधिक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हैं, उतने ही स्त्रियों के प्रति होने वाले अत्याचारों में दिन-दूनी रात चौगुनी वृद्धि हो रही है। इसका मतलब साफ है कि हमारे देश के नौजवान हों या वृद्ध, औरतों के प्रति संवेदनशील नहीं है। आज़ 6 महीने की बच्ची से लेकर 60 साल की वृद्धा तक अपने घर में सुरक्षित नहीं है। अधिकांश केसों में बलात्कारी और अत्याचारी निकट का ही संबंधी और जान-पहचान वाला होता है। यह कैसी विडम्बना है कि एक ओर हम- यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमंते तत्र देवता का राग अलापते हैं, नवरात्रि में कन्या पूजन का ढोंग करते हैं और दूसरी ओर उसी कन्या को एक जहालत भरी जिन्दगी देते हैं या फिर मौत के घाट उतार देते हैं। अतः अगर आप असलियत में मां के आराधक हैं, साधक हैं तो मातृशक्ति का सम्मान करें, उन्हें देवी का दर्जा न देकर मानवी का दर्जा दें। स्त्री को इंसान बना रहने दें, तभी आपका कन्या पूजन सार्थक होगा।
-सरिता सुराणा, हैदराबाद
1 टिप्पणियाँ
मेरे लेख को प्रकाशित करने हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सम्पादक महोदय।
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