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बच्चा गोद लेने की चाह (कहानी)


शिवांगी विवाह पश्चात अपने ससुराल आ गयी। पति निर्मल खुश थे कि उन्हें शिक्षित, संस्कारी पत्नी मिली थी। ससुराल में शिवांगी का सबने बड़ा स्वागत सत्कार किया। ननद और जेठ जेठानी तथा देवर आदि सब बड़े खुश थे।

परिवार में सभी नौकरियां करने वाले थे। शिवांगी भी एल आई सी आफिस में नौकरी करती थी। शिवांगी और आशीष में अच्छी अंडरस्टैंडिंग थी। आशीष एक प्राईवेट कंपनी में काम करते थे। दोनों के आफिस जाने से घर का काज़ नौकरानी के जिम्मे था, फिर भी आवश्यक काम तो स्वयं को भी करना पड़ता था। इसलिए शिवांगी करती भी थी और इस बात का उसे कोई म़लाल भी नहीं था।

शिवांगी और आशीष को वैवाहिक जीवन बिताते हुए दो साल हो गये तो आशीष की मां ने बहू शिवांगी से कहा - "क्या बात है बहू तुम्हें दो साल हो गये गृहस्थी में और तुमने अभी तक हमें दादी नहीं बनाया।यदि ऐसी कोई बात हो तो तुम दोनों किसी अच्छी लेडी डाॅक्टर को दिखाओ, शायद कोई शारीरिक कमी होगी तो वह ईलाज कर देगी..! "

यह सुन कर शिवांगी को बुरा तो लगा, परंतु वह समझ गयी कि पारिवारिक जीवन में संतान होना बहुत आवश्यक है।। शाम को उसने यह बात आशीष से कही तो वह भी चिंतित हो गया। फिर दो दिन बाद पति पत्नी एक लेडी डाॅ. सुषमा जोशी के क्लिनिक पर गये।

डाॅ. सुषमा जोशी ने शिवांगी का अच्छी तरह से चेक अप किया। इसके बाद कुछ जांच कराने का कहा। जांच कराने के बाद डाॅ. सुषमा जोशी ने शिवांगी को दस दिन के लिए दवाई खाने का कहा। आशीष शिवांगी के साथ ही डाॅ. सुषमा जोशी के यहां जाता था। उसे यह अच्छी तरह से ज्ञात था कि शिवांगी स्वस्थ एवं संतानवती होने की स्थिति में है। फिर भी चिकित्सा ज़रूरी थी।चिकित्सा चल भी रही थी। दस दिन बाद पुनः शिवांगी अपने पति आशीष के साथ डाॅ. सुषमा जोशी के क्लिनिक पर गयी।

डाॅ. सुषमा ने चेक अप किया, लेकिन उसे आश्चर्य हुआ कि शिवांगी की बॉडी में कोई सकारात्मक परिणाम नहीं दिखाई दिया। उसने फिर से नये तरीके से ट्रीटमेंट किया, लेकिन उसके बाद भी रिजल्ट आशाजनक नहीं मिला।
कुछ स्पेशलिस्ट डाॅक्टरों को दिखाया गया तो एक दो डाॅक्टर ने तो यहां तक कह दिया कि शिवांगी मां नहीं बन सकती। उसकी कोख गर्भ धारण करने योग्य नहीं है। यदि उसका आपरेशन किया जाएगा, तो शिवांगी के जीवन पर खतरा पड़ सकता है।

परिवारजनों में इस बात को लेकर चिंताजनक स्थिति पैदा हो गयी। आशीष के साथ साथ उसके माता पिता भी सोचने लगे कि आखिर ऐसा क्या हो गया, जो शिवांगी मां नहीं बन पा रही है। बड़े से बड़े डाॅक्टरों की सेवा ली गयी। सबके आश्चर्य का ठिकाना नहीं था कि इतना ईलाज़ होने के बावजूद शिवांगी मातृत्व से क्यों वंचित है। जेठ जेठानी भी अपनी तरह से उपाय बताते। शिवांगी स्वयं भी अब चिंता में डूब गयी। यदि वह मां नहीं बन पायी तो परिवार का स्नेह और प्यार नहीं पा सकेगी। शिवांगी के माता पिता भी अपनी बेटी के दुख से दुखी थे, लेकिन वे कर भी क्या सकते थे।

आशीष ने जब शिवांगी के चेहरे पर उदासी और चिंता के मंडराते बादल देखे तो उसने कहा - " शिवांगी, तुम चिंता क्यों करती हो, हम किसी बच्चे को गोद ले लेंगे। तुम अपने दिल से यह गलतफ़हमी मिटा डालो कि तुम मां नहीं बन सकती। गोद लेने वाली स्त्री भी आखिर मां ही होती है। वह किसी भी बच्चे को अपना बच्चा समझ कर पालती और बड़ा करती है तो वह भी मां ही कहलाती है। वह बच्चा भी उसे ही अपनी मां समझता है। "

"लेकिन अपना बच्चा, अपना होता है। मैं किसी और के बच्चे को गोद तो ले लूं, परंतु कल को वह आपको और मुझे अपना माता पिता न समझे तो ऐसे बच्चे को गोद लेने से क्या फायदा? " शिवांगी ने अपना तर्क देते हुए कहा।

"ऐसा तो बहुत कम होता है, बच्चा तो उसे ही अपना माता पिता मानता है जो उसे पालता पोसता और बड़ा करता है। खैर, तुम्हारी बात को मानते हुए मैं किसी बच्चे के गोद लेने की बात को यहीं पर समाप्त करता हूँ। अब आगे क्या करने का मन है इस पर विचार करो। "आशीष ने अपनी पत्नी शिवांगी की बात को मानते हुए कहा।

शिवांगी सोचने लगी फिर सोच कर बोली - " यदि हम बड़े भैया के छोटे बच्चे वंश को गोद ले ले तो कैसा रहेगा ?"

"यह तो बड़ी अच्छी बात होगी, परंतु वंश तो वैसे भी अपने ही घर में है उसे गोद लेने और न लेने से कोई फर्क तो पड़ेगा नहींं..। " आशीष ने कहा।

"फर्क तो बहुत पड़ेगा, वंश पर फिर बड़े भैया और भाभी का हक़ नहीं रहेगा, हमारा हो जाएगा। यह सब मैं कानूनी रूप से गोद लेने की बात कर रही हूं। "शिवांगी ने कहा तो आशीष सोचने लगा। फिर बोला - "ठीक है इसकी चर्चा मम्मी पापा और भाई भाभी से करते हैं। "

आशीष और शिवांगी ने जब यह बात मम्मी - पापा से की तो वे बोले - " जब हम सभी एक ही घर में रहते हैं तो वंश को अलग से गोद लेने की बात करना समझ से परे की बात है। फिर तुम्हें जो ठीक लगे वह करो। "

इसी तरह जब बड़े भाई और भाभी से बात हुई तो उन्होंने कहा - "वंश को हम गोद दे देंगें तो उससे बड़े वाला अंश अकेला पड़ जाएगा और दोनों की बड़ी बहन वंशिका उसके बिना कैसे रह पाएगी। "

"जब तक हम सब साथ हैं तब तक तो कोई भी बच्चा अकेला नहीं रहेगा, लेकिन ज़ब कभी नौकरी से तबादला हो जाएगा, तब यह नौब़त आ सकती है। तबके लिए विचार करना ज़रूरी है। "आशीष और शिवांगी की बात सुन कर भाई भाभी ने एकदूसरे को आपस में देखा और मन ही मन कुछ विचार करके बोले - "ठीक है आशीष, हम दोनों विचार करके बताते हैं। "

एक ही परिवार और एक ही घर होने के बावजूद सभी अपने अपने कमरे में निवास करते थे। सबका अलग अस्तित्व था। खाना और रहना अलग था, लेकिन सब एक परिवार के अंग होने से सबमें आपसी प्रेम, अपनत्व और सामंजस्य था। किसी तरह का मनभेद और मतभेद नहीं था। जहां आशीष और उसके बड़े भाई गणेश में अच्छी बनती थी वहीं शिवांगी अपनी जेठानी सुलभा से आदरपूर्वक बातचीत करती थी। दोनों में बड़ी किसी तरह की भेदभाव की भावना नहीं थी। यह एक अच्छे और संभ्रांत परिवार की पहचान होती है।

दो चार दिन ऐसे ही बीत गये। इसके बाद आशीष और शिवांगी ने विचार किया कि यदि वंश को बड़े भाई और भाभी ने गोद देने से इंकार किया तो वे क्या करेंगे। उनका अंतिम विचार था कि किसी अनाथालय से किसी बच्चे को गोद ले लिया जाएगा। यही एकमात्र उचित निर्णय था।

एक दिन बड़े भाई गणेश ने अपने छोटे भाई आशीष और उसकी पत्नी शिवांगी को अपने पास बुलाया ।जब दोनों आ गये तो अपनी पत्नी सुषमा को भी बुला लिया। चारों जब इकट्ठे बैठ गये तब गणेश ने अपनी पत्नी सुषमा से कहा - " सुषमा, तुम इन दोनों को बता दो कि हमने क्या निर्णय किया है.. .? "

सुषमा ने प्यार और स्नेह से कहा - " हम दोनों ने मिल कर तय किया है कि हम अपना वंश आपको गोद लेने के लिए दे देंगे। अब इसकी जो भी प्रक्रिया हो, उसे आप लोग पूरी कर लीजिए और हम उस पर अपने हस्ताक्षर कर देंगे। "

यह सुन कर आशीष अपने बड़े भाई के चरणों में झुक कर उन्हें धन्यवाद देने लगा।वैसा ही उसने अपनी भाभी के लिए भी किया। शिवांगी तो भावुक होकर अपनी जेठानी के गले लग कर खुशी के आंसू छलकाने लगी।

उसी समय आशीष के माता पिता भी वहीं आ गये। वे भी इस फैसले से खुश हुए। दोनों बेटो और दोनों बहुओं को आशीर्वाद देते हुए बोले - " तुम चारों में ऐसा ही स्नेह और प्रेम बना रहे, यही मैं अपने ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ। "

इस अवसर पर आशीष- शिवांगी, गणेश -सुषमा तथा शिवांगी के सास -ससुर सभी लोग खुश थे। तीनों बच्चे अंश, वंश और वंशिका भी हंस -खेल रहे थे, परंतु उन्हें पता नहीं था कि यह सब क्या हो रहा है ?

-डॉ. रमेशचन्द्र, इंदौर


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