मैं गिरते गिरते सम्भाला गया हूँ
कई बार घर से निकाला गया हूँ
ना घर का रहा ना घाट का मैं
फुटबाल की मानिंद उछाला गया हूँ
कभी कभी इतना मजबूर हुआ हूँ मैं
कि खुद का दिवाला निकाला गया हूँ
अँधेरों से इतना हुआ प्यार मुझको
स्वयं छोड़ कर के उजाला गया हूँ
रहजनो का इसमे दोष कुछ भी नहीँ है
मैं खुद बनके उनका निवाला गया हूँ
तुम्ही बताओ अब यारो पारस करे क्या
खुद ही छोड़ कर मैं पियाला गया हूँ
-रमेश कटारिया 'पारस', ग्वालियर
स्वयं छोड़ कर के उजाला गया हूँ
रहजनो का इसमे दोष कुछ भी नहीँ है
मैं खुद बनके उनका निवाला गया हूँ
तुम्ही बताओ अब यारो पारस करे क्या
खुद ही छोड़ कर मैं पियाला गया हूँ
-रमेश कटारिया 'पारस', ग्वालियर
0 टिप्पणियाँ