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भारतीय ग्रंथों में लक्ष्मी

दीपावली विशेष-

लक्ष्मी को आदिकाल से ही धन-संपत्ति एवं समृद्धि की दाता देवी माना जाता रहा है। भारतीय धर्म ग्रंथों में उनका महत्व इतना अधिक है कि भगवान विष्णु को भी उनके, अभाव में अपूर्ण माना गया है, इसीलिए उन्हें (विष्णु को) लक्ष्मी नारायण के नाम से संबोधित किया जाता है। विष्णु पुराण में लक्ष्मी जी की प्रशस्ति में कहा गया है- वे विष्णु की आत्मा है, उनकी शक्ति है। लक्ष्मी के बिना विष्णु की कोई सत्ता नहीं। दोनों परस्पर एक है। लक्ष्मी के बिना विष्णु निर्जीव है उसी प्रकार विष्णु के बिना लक्ष्मी भी निष्प्राण हैं। विष्णु अर्थ है तो लक्ष्मी वाणी है। विष्णु न्याय है तो लक्ष्मी नीति है। विष्णु धर्म है तो लक्ष्मी सक्रिया है। श्रीमद्भागवत में कहा गया है कि लक्ष्मी विष्णु की अर्धांगिनी तथा महामाया स्वरूपिणी हैं। विष्णु के सभी गुण उनमें विद्यमान हैं।

भारतीय धर्म ग्रंथों में लक्ष्मी का वर्णन तीन स्वरूपों में सर्वाधिक मिलता है। ये रूप हैं श्री या कमला स्वरूप, राजलक्ष्मी स्वरूप तथा महालक्ष्मी स्वरूप। विष्णु पुराण के अनुसार लक्ष्मी जी भृगु की कन्या थी। उनके धाता तथा विधाता नामक दो भाई थे। पर उनकी उत्पत्ति उस समय हुई जब देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया तथा उसमें से चौदह रत्न निकले। लक्ष्मी जी भी एक रत्न थी वे कमल के आसन पर विराजित तथा कमल पुष्प धारण किए हुए समुद्र से प्रकट हुईं थीं।

विष्णु पुराण के अनुसार लक्ष्मी जी की आभा स्फटिक मणि के समान थी। दिग्गजों ने उन्हें स्नान कराया तथा विश्वकर्मा ने उन्हें आभूषण पहनाएं। इस प्रकार पवित्र जल से स्नान करके अलंकृत हुयीं लक्ष्मी जी को भगवान विष्णु को दे दिया गया और वे विष्णु के वक्ष:स्थल में विराजमान हो गयीं। श्री मद्भागवत में उनके गजलक्ष्मी स्वरूप का चित्रण है। जब वे समुद्र से प्रकट हुयीं तो पृथ्वी ने अभिषेक के लिए औषधियां प्रस्तुत की। ऋषियों ने अभिषेक कराया। बाद में लक्ष्मी जी सिंहासन पर आसीन हुयीं। दिग्गजों ने उनका स्नान कराया। समुद्र ने रेशमी वस्त्र दिए। वरूण ने वैजयंती माला प्रदान की। विश्वकर्मा ने आभूषण, सरस्वती ने मोतियों की माला तथा ब्रह्मा जी ने कमल समर्पित किए।

विष्णु पुराण में उन्हें जगजननी कहा गया है। उनके कमला स्वरूप का चित्रण करते हुए कहा गया है कि उनके नेत्र कमल के समान है। वे कमल से उत्पन्न हुई है। कमल ही उनका निवास स्थान हैं। वे अपने हाथों में कमल का पुष्प धारण करती हैं। वे कमल के समान मुख वाली हैं तथा अपनी नाभि से कमल उत्पन्न करने वाले (पद्मनाभ) भगवान विष्णु की प्रिया है। अग्नि पुराण में लक्ष्मी के चतुर्भुज स्वरूप का वर्णन है। इन पर चार हाथों में वे चक्र, शंख, श्रीफल और कमल धारण करती हैं। विष्णु धर्मोत्तर पुराण में भी उनकी चार भुजाएं बतायी गयी हैं। जिनमें वे अमृतघट, कमल, बिल्वफल तथा शंख धारण करती हैं। दो हाथी उन पर जल वृष्टि करते हैं तथा उनके मस्तक पर कमल सुशोभित रहता है। लक्ष्मी जी की स्तुति से भारतीय धर्मग्रंथ भरे पड़े हैं। श्री मद्भागवत में कहा गया है कि विष्णु यदि सभी प्राणियों की आत्मा है तो लक्ष्मी शरीर इन्द्रिय तथा अलंकरण है। विष्णु पुराण कहता है- जब-जब भगवान विष्णु अवतार धारण करते हैं तो लक्ष्मी जी सदा ही उनके साथ विद्यमान रहती हैं और उनकी सहायता करती हैं। प्रत्येक कार्य में भगवान विष्णु को उनसे सहायता अपेक्षित रहती है। जब विष्णु ने परशुराम का रूप धारण किया तब लक्ष्मी ने पृथ्वी का रूप धारण किया। श्रीराम के अवतार के समय वे सीता के रूप में आयीं तथा कृष्णावतार में वे रुक्मणी थी। अग्नि पुराण कहता है- लक्ष्मी जी जगत की माता तथा विष्णु पिता हैं तथा इन्हीं माता-पिता का स्वरूप अर्थात् लक्ष्मी नारायण स्वरूप ही इस सारे संसार में व्याप्त है।

लक्ष्मी जी को भारतीय धर्मग्रंथों में पृथ्वी या भू देवी भी कहा गया है। श्रीमद्भागवत में कहा गया है कि जब भगवान विष्णु ने वाराह अवतार लिया तो लक्ष्मी जी भूदेवी या पृथ्वी के रूप में उनके दांत पर आसीन हो गयीं। महाभारत के शांति पर्व में, सरस्वती की वंदना में कहा गया है कि महालक्ष्मी से जो सात्विक स्वरूप प्रकट हुआ वही सरस्वती है।

वराह पुराण में विष्णु को शंकर एवं लक्ष्मी को पार्वती कहा गया है तथा जो व्यक्ति लक्ष्मी एवं पार्वती को अलग-अलग समझता है, उसे अधम कहा गया है। विष्णु पुराण में कहा गया है कि विष्णु जब रौद्र रूप धारण करते हैं तो लक्ष्मी जी पार्वती बनकर रूद्र (शिव) के साथ विचरण करती हैं। मार्कण्डेय पुराण में महालक्ष्मी को भगवती दुर्गा का ही एक स्वरूप बताया गया है। रूप मण्डन में उन्हें वैष्णवी देवी कहा गया है तथा उन्हें गरूड़ पर सवारी करते हुए बताया गया है। जबकि मान्यता यह है कि लक्ष्मी का वाहन उंलूक (उल्लू) होता है। ये तो बहुत थोड़े से उदाहरण हैं। वस्तुत: भारत के अनेक पुराण एवं धर्मग्रंथ लक्ष्मी की महिमा, महत्ता एवं प्रशस्ति से भरे पड़े हैं। आखिर वे धन-समृद्धि-सम्पन्नता एवं संपत्ति की दाता देवी हैं। जिनकी आकांक्षा आमतौर पर हर मानव के मन में आदिकाल से चली आ रही है और अनंत काल तक चलती रहेगी।
-दिनेशचन्द्र वर्मा
(विनायक फीचर्स)

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