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सौगात (लघुकथा)


कौमुदी का पूरा परिवार आ रहा था । कौमुदी ,उसका पति, बच्चे, उसके सास ससुर व उसकी बहन। उसकी मेड को जब पता लगता कि इतने लोग आने वाले हैं तो वो बेहोश होने लगती । उसके हाथ पांव फूलने लगते । वह बस उसकी हेल्प थी । कुक रखना तो बड़ा महंगा सौदा है,और इतने भी मेहमान नहीं आते कि वह संभाल न सके । किसी तरह काम चल रहा था । वैसे भी इतना घबराने वाली बात नहीं थी। वे सुबह आ रहे थे और सायं को जाने वाले थे । सुबह से सायं तक की व्यस्तता उसे ज़रा भी बुरी नहीं लग रही थी पर आज वह बहुत थका हुआ अनुभव कर रही थी ।

रात भर वह सो न पाई थी उसे इर्रिदमिया की शिकायत थी कभी –कभी जब इसका अटैक आ जाता तो दस –ग्यारह घंटे उसे जूझना पड़ता । रात को रह रह कर उसकी पल्स मिस होती रही और हृदय की अनियमत धड़कन उसे गले तक महसूस होती रही। शरीर तो बिस्तर छोड़ने को तैयार ही नहीं था कोई नहीं जानता उसने रात कैसे बितायी। पति को भी उसने नहीं जगाया था, पुत्र और बहू को खबर करने की बात तो दूर की थी .... नमिता उसकी बहू ..?

उसने मन ही मन खुद को डांटा ....अब बहू-पुराण मत खोलना।लेकिन उसे सब समझाते थे कि हक से बच्चों को काम बताया करो। ... नहीं हो सकता तो कौन करेगा ? उनके अलग होने के बावजूद उन्हें रहने के लिए अपने ही घर में कितनी साफ –सुथरी जगह दे रखी है। कितने फायदे हैं उन्हें। जब रिश्ते हाथ से रेत की तरह फिसलने लगते हैं तो फायदा नुकसान ही सोचा जाता है।.... ओफ ...फ्... हो ..वह फिर सोच-विचार में पड़ गयी ।

वह धीरे –धीरे उठी फोन उठाया और नमिता को अपनी बात कही । कितना फर्क है अलग रहने में ,अब उसे कहना पड़ता है।
नमिता आज मेहमान आ रहे हैं ।सब्जियां आदि तो बनवा लूंगी ।तुम राईस, रायता और सलाद आदि तैयार कर लेना या नीचे ही आ जाना ।
-ठीक है मम्मी जी।
उसके तन मन का बोझ हल्का हो गया था ।फिर भी वह बहुत थकी हुई थी ।
सब कुछ ठीक –ठाक हो गया था ।मिल जुल कर काम हो गया ।मेहमान चले गए ।बच्चे भी ऊपर चले गए ।थोड़ी देर बाद बेटा नीचे आया ।वह बच्चे को झुला रहा था ।... बोला ......मम्मी ! इस तरह की कोई हेल्प चाहिए तो बता दिया करो ।
-हेल्प ?
वह हतप्रभ बेटे को देखती रह गयी ।
-चन्द्रकान्ता अग्निहोत्री, पंचकुला (हरियाणा)

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