म.प्र. साहित्य अकादमी भोपाल द्वारा नारदमुनि पुरस्कार से अलंकृत

माँ तुझे प्रणाम


'माँ' शब्द की व्याख्या करना आसान नहीं है क्योंकि यह शब्द इतना विशाल है कि देव लोक के देवता भी छोटे पड़ते है। इतना ही नहीं तीर्थंकर एवं इन्द्र भी उन्हें प्रणाम करते है। कोई भी धर्म ऐसा नहीं है जहां इनकी गाथा नहीं गायी गयी है। वेद, पुराण, कुरआन से लेकर बाइबिल इत्यादि हर ग्रंथ में मां का दर्जा सबसे ऊंचा माना है। क्योंकि उसकी वाणी में संगीत का स्वर होता है और स्वर मेें ईश्वर का दर्शन होता है। अबोध बालक जब मां बोलता है तो नारी का ममत्व जनंकृत हो जाता है, दुनियां की सारी खुशिया इस शब्द के आगे फीकी लगती है। बहुत ही सारभूत एवं गहरा शब्द है 'माँ'।

वेदों में मां को पूज्या, स्तुति योग्य एवं आह्वान योग्य माना है। महाभारत में यक्ष ने जब युधिष्टर से पूछा कि “भूमि से भी भाारी कौन है?“ तब युधिष्ठर ने जवाब दिया “माता गुरूतरा भूमेः। अर्थात् मां इस भूमि से भी कहीं अधिक भारी होती है। मनु ने तो यहां तक कहा है- दस उपाध्यायों के बराबर एक आचार्य, सौ आचार्यों के बराबर एक पिता और हजार पिताओं से अधिक गौरव एक माता होती है। वेदों में प्रार्थना की गयी है, मां रसमयी, स्नेहमयी और सन्तानों के हितार्थ समर्पण करने वाली होती है। वह त्यागमयी, सत्यमयी, दयामयी, क्षमामयी, सत्यमयी और धर्ममयी होती है। वही ऋग्वेद में एक ऋचा में प्रार्थना की “जल के समान शुद्ध करने वाली माताएं हमारे अन्तः करणों को शुद्ध करे। ऐसी कामना की है।

आदि शंकराचार्य कहते है- “कुपुत्रों जायते क्व चिदपि कुमाता न भवित।“ अर्थात् पुत्र तो कुपुत्र हो सकता है पर माता कभी कुमाता नहीं हो सकती। तैत्तिरीयोपनिषद में कहा है - “मातृ देवो भवः।“ अर्थात् माता देवी समान है। मार्यादा पुरूषोत्तम राम लंका जीतने के बाद राज्य सुख भोगने के प्रसंग में अनुज लक्ष्मण के प्रस्ताव को ठुकरा कर कहते है “जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरियसी“ अर्थात् जननी और जन्म भूमि स्वर्ग से भी बढ़ कर होते हैं।

“मात्वान पितृमानाचार्यवान् पुरूषां वेद“ - कहता है इस संसार में तीन ही उत्तम है- शिक्षक, माता-पिता और गुरू तभी मनुष्य मानव बनता है। महर्षि दयानन्द लिखते हैः- वह संतान अति सौभाग्यशाली ही है जिनके माता-पिता धार्मिक और विद्वान है। जितना माता से सन्तानों के उपदेश और उपकार पहुंचता है उतना किसी अन्य से नहीं। इसलिए मातृमान वह होता है जिसकी माता गर्भाधान से लेकर जब तक पूरा विधान होः तब तक सुशीलता का उपदेश करे। जिसमें गर्भस्थ शिशु को अच्छे संस्कार मिल सके। जैसे सुभद्रा-अर्जुन पुत्र अभिमन्यु को मिले।

मां की महानता को इसाई धर्म में बताते हुए परमेश्वर पिता मूसा के माध्यम से दस हुक्म दिए थे जिसमें पांचवा हुक्म है “तू अपनी माता का आदर कर, जिससे तू दीर्घायु को प्राप्त करे। (व्यवस्थाविवरण-5ः16) अगर इन्सान माता की सेवा करता है तो वह लम्बी उम्र तक जीवित रहता है।“ यशायाह 49ः15 में परमेश्वर पिता कहते है, “क्या यह हो सकता है कि कोई माता अपने दूध पिए हुए बच्चे को भूल जाए और अपने जन्माए हुए लड़के पर दया न करे। “बाइबल के नीति वचन 23ः22 में लिखा है।“ “अपने जन्माने वाले की सुनना और जब तेरी माता बुढ़ियां हो जाये तब भी उसे तुच्छ न जानना।“ लेकिन आज जवान बच्चे माता को तुच्छ समझ कर उनका उपहास करते है। यह महा पाप है। माता का अपमान करने वालों के लिए नीति वचन 30ः17 में बड़ी सख्ताई से लिखा है- “जिस आंख से कोई अपने पिता पर अनादर की दृष्टि करे और अपमान के साथ अपनी माता की आज्ञा न माने उस आंख को ताराई के कौवे खोद खोद कर निकालेगें।“ इतना आदर मां के प्रति बाइबल में लिखा गया है।

कुरआन में लिखा है मां के कदमों के तले जन्नत है। कुरआन में सूरह अहफाफ आयत 15 में स्पष्ट किया है, “हमने इन्सान को आदेश दिया है कि अपने मां बाप के साथ नेक बर्ताव करे उसकी मां ने बहुत कष्ट उठाकर उसे अपने पेट में रखा और बहुत तकलीफ उठाकर ही उसे जन्म दिया। मुहम्मद साहेब से एक व्यक्ति ने पूछा “इन्सानों में मेरे अच्छे बर्ताव से सबसे ज्यादा हकदार कौन है- मुहम्मद साहब ने कहा “तेरी मां“। फिर उसने पूछा इसके बाद उत्तर मिला “तेरी मां“ फिर उसने पूछा इसके बाद कौन है फिर कहा “तेरी मां“ फिर पूछा इसके बाद कौन है फिर कहा तेरे पिता अर्थात हदीस की रोशनी में मां का स्थान पिता के मुकाबले तीन गुणा ऊंचा है। मुहम्मद साहब ने एक और हदीस में फरमाया “मैं वसीयत करता हूं इनसान को मां के बारे में कि वो उससे नेक बतार्व करे। मां का अनादर या उनकी बात न मानना और उन्हें कष्ट पहुंचाना बहुत बड़ा गुना है। यह इतना बड़ा गुना है कि ईश्वर की भक्ति और इबादत करने के बावजूद भी ऐसे व्यक्ति का जन्नत जाना बहुत मुश्किल होगा। एक हदीस में उन्होंने कहा है “जन्नत मां के कदमों के नीचे है।“

मां के चरणों में जन्नत बसती है। मां के आंचल में संसार भर की खुशियां है। मां की गोद में बैठने के बाद जो सुकून मिलता है वह दुनियां में कहीं नहीं मिलता। संसार की सुन्दरता मां की खूबसूरती के सामने तुच्छ है। मां तो ममता की देवी है इसलिए सन्तान के लिए मां पहला मंदिर है क्योंकि मां के जन्मदाता के रूप में बह्मा, पालनकर्ता के रूप में विष्णु तथा विकास एवं उद्धार करने के लिए महेश तीनों रूप समाहित है। अगर कोई मां को देवी कहे लेकिन देवी तो सिर्फ वरदान ही देती है लेकिन मां ने तो सन्तान को जीवनदान दिया है। इसलिए वह तो देवी भी बड़ी है। मां की महिमा क्या करें वह तो महिमा से भी उपर है, और उसे उमपा भी क्या दें? क्योंकि ‘उप‘ में भी मां समाहित है। अगर कोई उसे सागर कहे तो उसका जल भी खारा है लेकिन मां का दूध तो अमृत जैसे मीठा है। अतः सागर भी उसके सामने फीका है। अगर उसे चन्द्रमा जैसे कहे तो उसमें भी दाग है लेकिन मां की ममता में कभी दाग नहीं होता। अतः चन्द्रमा भी उसके सामने बोना है। अगर कोई से सूर्य की उपमा दे तो सूर्य केवल दुनियां को रास्ता दिखाता है लेकिन मां केवल रास्ता ही नहीं दिखाती वरन् अंगुली पकड कर चलना भी सिखाती है। अतः सूर्य उसके आगे फीका है।

मां की ममता दस बच्चों में बंटकर भी खण्डित नहीं होती क्योंकि उसके हाथ जब भी उठते हैं वे ममता के ही होते है। क्योंकि वह “मां“ है। ममता की भूख है। मां की खुशी तो इसमें है कि उसकी संतान सुखी रहे। बस सन्तान की आंखों में पानी होना चाहिए। मां का ध्यन बेटे के शरीर पर जाता है कि वह स्वस्थ्य है कि नहीं परन्तु पत्नी का ध्यान पति की कमाई पर जाता है जब कि दोनों स्त्री है।

मां के ऋण से कभी कोई उऋण नहीं हो सकते। कहते है ममता अपना मोल नहीं मांगती। अकबर के दरबार में टोडरमल ने मां का ऋण चुकाना चाहा लेकिन एक रात मां को सहन नहीं कर पाया। मदर्स डे पर बेटे मां को कुछ देना चाहते है पर क्या भौतिक वस्तुएं उस ममता का ऋण चुका सकते है- नहीं! मां हर समय दुआ मांगती है कि बच्चे सुखी रहे उन्हें कष्ट न हो। ममता छीजती नहीं है।

मां के लिए कोई एक दिन निर्धारित नहीं हो सकता तीन सौ पैंसठ दिन उसके लिए कम है। सदैव ध्यान रखने की बात है कि भूल से भी मां को “धन्यवाद“ नहीं कहा जाये वरन उसका आभार प्रकट करे। तरीका चाहे कोई भी हो मां को तो उपहार भी नहीं चाहिए, क्योंकि जन्म देने के बाद वह सदैव देने की भूमिका में ही रहती है। चाहे वह आशीश ही क्यों न हो। मां के चरणों में सिर्फ इतना ही कहना चाहूंगा-
वो अहसास हो तुम जो कोमल लगता है
वो स्पर्श हो तुम जो शीतल लगता है।।
तुम्हे पाकर ये जहां पा लिया मैने
तुम्हारे न होने से हर पल निर्थक लगता है।।

-पदमचंद गांधी,भोपाल

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ