वो देखा है, ये भी देख
सुख देखा है दुःख भी देख
बच्चों का बचपन देखा है
अब तू अपना पचपन देख
यार दोस्त पडोसी देखे
अब अपने विरोधी भी देख
बच्चे सभी बड़े हो गये
अब उनके बच्चो को देख
बच्चो की अकड़न देखी है
अब तू अपनी जकड़न देख
कोई नहीँ पूछने वाला
तन्हाई का आलम देख
दलिया खिंचडी खा ली तूने
खाली खाली बर्तन देख
खाली हाथ चले जाना है
कुदरत का ये नर्तन देख
गोली खाऔर दवाई पीले
फ़िर कांटों का बिस्तर देख
पारस तूने काँटे बोए
अब तू उनका मर्दन देख
-डॉ रमेश कटारिया 'पारस', ग्वालियर
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