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सम वेदना


कोई इतना संवेदनहीन कैसे हो सकता है
कि विवशता की चाय में घुली
वेदना के मर्म को ना जान सके

सुबह-सवेरे कोई चिड़िया
शयन कक्ष की खिड़की में आकर बैठी हो
और आपकी आँखों में दाना-पानी की तस्वीर ना उभरे

भूख से बिलबिलाती कोई नज़र
आपकी ओर मुखातिब हो
और आपकी जुबां मशगूल हो स्वादानन्द में

शासन-प्रशासन निर्दोष जनों पर
जोर आजमाइश का दृश्य री-टेक कर रहा हो
और आप हों मूक दर्शक के रोल में

ज़मीं का कोई तारा
टूट कर बिखर रहा हो
और निहार रही हो आसमां को आपकी नजरें

कोई इतना संवेदनहीन कैसे हो सकता है
कि संवेदना को पी कर निगल गया हो
संवेदना कभी तो जन्मती होगी ??

संवेदना को भूली बिसरी यादों की तरह
कभी तो आना होगा,आना ही होगा
संवेदना इस तरह मर नहीं सकती......

-रामदास 'समर्थ', उज्जैन

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