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बदलते परिवेश में भूलते सम्मान


वर्तमान में कई वृद्ध परिजनों का तिरस्कार झेल रहे है।जिसकी मुख्य वजह आधुनिकीकरण ,कामकाजी लोगों का स्थानांतरण व युवाओं का शहरों की ओर पलायन इससे बुजुर्गों की अनदेखी हो रही है। साथ ही अपने बड़ों के प्रति आदर सम्मान छूटता जा रहा है ।

संग बैठकर भोजन करना ,कार्यक्रमों में एवं बाहर घूमने में अपने माता -पिता को साथ लेकर जाने की या उनके साथ जाने की सोच में बदलाव प्रतीत होने लगा है।माता- पिता के प्रति युवाओं हो रहे इस तरह के बदलाव से भविष्य के चिंतनीय प्रश्न उठने लगे है ।

वृद्ध माता-पिता को भी चाहिए की वे इलेक्ट्रॉनिक युग की भाग दौड़ भरी दुनिया में से युवा पीढ़ी के लिए समझाइश हेतु कुछ समय निकाले । परिजनों को चाहिए की वे वृद्ध लोगो की अनदेखी न करे।और उन का तिरस्कार न कर बल्कि उनका सम्मान करे क्योकि उन्होंने ही परिवार शब्द एवं आशीर्वाद की उत्पत्ति की है।

एक मित्र ने इस विषय पर बोला था की "बा अदब बा नसीब -बे अदब बे नसीब " इसके अलावा बच्चों के जीवन की और तनिक झांके तो पाएंगे की बदलते परिदृश्य में सब कुछ बदलता चला गया । बच्चे तो है मगर बचपन ग़ुम हो गया । कहानियां नहीं बची,दादी -नानी , माँ लोरिया और कहानियाँ सुनाती थी तो ज्ञानार्जन में वृद्धि होती थी वही कोलाहल से दूर एकाग्रता का समावेश होता था, मीठी नींद जो की अच्छे स्वास्थ्य का सूचक होती वो इनसे प्राप्त होती थी, किन्तु वर्तमान में इलेट्रॉनिक की दुनिया में ,भागदौड़ की व्यस्तम जिंदगी में अपने लिए साथ बिताने का समय लोग नहीं निकाल पाते जिससे रिश्तेदारी का व्यवहारिक ज्ञान भी पीछे छूट सा गया है ।

कहानी से कल्पनानाओं की उत्पत्ति होती वही मातृत्व दुलार भी सही तरीके से प्राप्त होता, अब ये चिंता सताने लगी की कही कहानियां विलुप्त न हो जाये नहीं तो रिश्तो का सेतु ढह जायेगा और बच्चे लाड - प्यार और कहानियों से वंछित हो जायेगे । हाईटेक होते युग में मोबाइल और इंटरनेट ही सहारा बन गए है । दादी -नानी की कहानियां सुनने की प्रथा जैसे अब विलुप्ति की कगार पर जा पहुंची हो। कहानियां कहने की कला बच्चों के स्मृति पटल पर अंकित हो कर और भावी पीढ़ी को कहने की कला देती है। 

मगर उम्मीद फिर से जगी है । घरों में भले ही बच्चे कहानी न सुन सके।कई स्कूलों में उन्हें कहानियां सुनाई जा रही है एवं कहानियां कहना सिखाया जा रहा है। बच्चों में भाषा के ज्ञान को मजबूती देने के लिए एवं पाठ्यक्रमों में बाल साहित्य को एक नई दिशा प्राप्त होगी। अभिभावकों को भी चाहिए की बच्चों के लिए अपनी भाग दौड़ भरी व्यस्तम जिंदगी से कुछ समय बच्चों को कहानियां सुनाने के लिए भी निकाले ।

स्कूल, कॉलेज के दिनों पढाई की शिक्षा के साथ बच्चों ने अपने गुरु का आदर सम्मान भी करना चाहिए । ज्ञान के साथ ही आदर सम्मान जुड़ा होता है । जिसे हम सभी शिक्षण के दौरान प्राप्त करते है। नैतिक शिक्षा अपने आप में बहुत महत्त्व रखती है। कुछ गलती हो तो लोग ताना मार ही देते है -क्या यही सिखाया था ।  गुरु के लिए हर बच्चा कोहिनूर ही होता है। पढाई खूब मन लगा कर करें । गुरु के अलावा अपने से बड़ों का सम्मान करना भी सीखे । यही सीख जीवन पर्यन्त तक बेहतर जीवन के लिए मूलमंत्र सिद्ध होगी । 

स्कूली जीवन की अनगिनत यादों को आज जब याद करते है तो बचपन की यादों में खो कर मुस्कान चेहरे पर आ जाती है । गुरु अपने ज्ञान और अनुभव को सभी विधार्थियों में बाटते और दी गई शिक्षा को हम सभी ध्यान पूर्वक पढ़ते और समझते थे । गुरु जब कक्षा में आते तो सब खड़े होकर उनका अभिवादन करते और जब परिवार के साथ बाजार में जाते और रास्ते में गुरु मिल जाए तो पापा- मम्मी के संग गुरु को नमस्कार करते, यही आदर -सम्मान की भावना गुरु से हमसे स्कूल जीवन में सीखी थी जो आज हमारे दिल में बड़े होने एवं बड़े पद पर विधमान होने पर सजीव है । 

चुनाव का वाक्या याद आता है। जब मुझे पीठासीन अधिकारी पद और मेरे गुरु जिन्होंने मुझे पढ़ाया था उन्हें मेरे अंडर में पोलिंग अधिकारी नंबर एक पर नियुक्त किया गया ।चुनाव में और भी अधिकारी मेरी चुनाव संबंधी सहायता हेतु मेरे साथ थे । चुनाव सामग्री पद के हिसाब से संभालने का दायित्व था हम सभी अपनी -अपनी सभी चुनाव सामग्री लेकर बस की और चलने लगे ।मैने देखा की ये तो अपने गुरूजी है।  जिन्होंने बचपन में मुझे पढ़ाया था। वे अब बुजुर्ग हो चुके थे और उनसे उनकी सभी सामग्री और स्वयं का भारी बेग भी उठाए नहीं जा रहा था । मैने गुरूजी से कहा - 'सर ये सब आप मुझे दीजिए में लेकर चलता हूँ ।' गुरूजी ने कहा कि -'आप तो हमारे अधिकारी है आप से कैसे उठवा सकता हूँ।' मैने कहा 'आपने तो हमे शिक्षा के साथ सिखाया था, आदर सम्मान का पाठ आप की शिक्षा के बदौलत ही मै आज बड़े पद पर नौकरी कर रहा हूँ ,ये क्या कम है ?'

मैने ,मेरे गुरु की चुनावी सामग्री और बैग उठा लिए । गुरु की आँखों में आँसू छलक पड़े और मेरे मन में साहस का हौसला भर गया ,आदरणीय मेरे गुरु आज भी मेरे साथ है जिनसे ज्ञान और अनुभव अब भी प्राप्त करता रहूंगा । यही मेरी गुरु सेवा और सहायता अच्छे कार्य हेतु सदैव जीवन भर मेरे साथ रहेगी व प्रेरणा देती रहेगी।

-संजय वर्मा 'दॄष्टि',मनावर जिला धार

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