कुछ ही समय पश्चात सुरेश पानी पीने फ्रिज तक पहुंचा, श्रेया ने फौरन बोतल लेते हुए पानी की भरी गलास उसके तरफ बढ़ाई।
"मैं ले लेता तुमने कष्ट क्यों किया ?
"नहीं कष्ट कैसा, यह तो मेरा फर्ज है , मैं गुस्सा आपसे हूं अपने फर्ज से और कर्तव्य से नहीं!
सुरेश के चेहरे पर मुस्कराहट सी आ गई । दोनों पुनः बिस्तर की ओर आगे बढ़े। सुरेश ने सामान्य दिनों की तरह ही श्रेया को हम बिस्तर करना चाहा...!
इतने में, यह क्या मेरा मूड नहीं है ! प्लीज
उसकी बातों को ही दोहराते हुए योद्धा बन सब कुछ करने का प्रयास किया।
”आप लोगों को तो बस वही...."
”नहीं श्रेया, ऐसा नहीं है! क्या करें हम मर्दों को घर, बाहर दोनों ही देखना पड़ता है, घरवाली यदि रूठ जाए तो एक पप्पी देकर उसे मनाया भी जा सकता है, पर बाहर वाले यदि रूठ जाए तो टेंशन ही टेंशन”
”हां हम तो बेकार हैं"
”अरे श्रेया, बेकार नहीं, तुम तो मेरे गले का फंदा हो, यानी हार हो"
”आप ना..."
दोनों घंटो हंसी- मजाक करते रहे। अचानक ही श्रेया की तबीयत बिगड़ी और कुछ समय के अंतराल में वह दुनिया छोड़कर चली गई।
अब सुरेश जिंदगी की लड़ाई में बिल्कुल अकेला सा रह गया । उसे रात्रि के अंधेरे में श्रेया की परछाई नजर आती। एक दिन प्रातः काल सुरेश श्रेया की यादों में फाटक पर मिट्टी में यूं ही बैठा इंतजार कर रहा था। इतने में सामने से सिर पर दही का मटका लिए एक वृद्ध महिला गुजरी ।
”दही ले लीजिए, दही...”
”किसके लिए लूं ? खाने वाली तो अब रही नहीं”
उनके भावुक स्वरों को देख कहने लगी, "साहब बहुत गर्मी है, आप ही खा लेना" और जाने वाले पर क्या दुख करना । आज तक मरने वाले को कोई रोक पाया है क्या?”
”यह दुनिया तो मोह- माया है। जब तक जिंदा रहो फर्ज, कर्त्तव्य के तले दबे रहो, मरने के बाद सारे कर्तव्य फर्ज सब कोसों दूर हो जाते हैं, लेकिन हां, जिसे हम ला नहीं सकते उसकी यादों में खोकर अपने आज को क्यों खराब करना ? वक्त के साथ इंसान अपने हर गम भूल जाता है और मेरी हालत भी कभी आप ही जैसी हो गई थी, लेकिन अपने हिस्से की जिंदगी तो हमें कटनी ही पड़ती है।”
”आप सही कह रही हैं”
महिला की बातों का सुरेश गहरा प्रभाव पड़ा और नए रूप में जीने का एक हौसला सा पैदा हुआ।
-डोली शाह,हैलाकंदी (असम)
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