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कहर बरपाती बाढ़


बिगड़ता है जब प्रकृति का तेवर
जब होती है मूसलाधार बरसात
और बाढ़ मचाती है हाहाकार
जलमग्न में डूबती है
गांवों, नगरों, महानगरो की
अनगिनत झुगी झोपड़िया बस्तियां
चारों और सुनाई पड़ती है
फंसे मानव की जिन्दगियां
बचाव की चीख पुकार
भीषण बाढ़ में

बचाव को
हाहाकार करती
अनगिनत जिंदगियां
सुख से कटते दिन में
कहर बरपाने को
उतारू होती है बाढ़
अचानक आती जब
मूसलाधार बरसात
चारों तरफ दिखती है
डूबे इमारतों में भीषण बाढ़

मचाता है जनजीवन त्राहि त्राहि
संकटों में घिरता
पशु पक्षी मानव का
विशाल संसार
प्रकृति की छेड़छाड़ में
बिगड़ती दयनीय हालात में
त्राहि त्राहि करते है
बाढ़ पीड़ित परिवार

जीवन के सुनहरे रंग में
भारी ओले तेज आंधी हवाओ में
और तेज मूसलाधार बरसात
मौसम में प्रकृति के
लगती है साथ
अस्त व्यस्त होती
प्रकृति की सुरक्षा
छेड़छाड़ में उफ़नती प्रकृति
सबजन भुगतने को
है खुद लाचार

राहत सेवा में जुटकर
मानव सेवा की
मिशाल बाढ़
दिखलाती है
भीषण तबाही करती बाढ़
शिविरों में जिंदगी
काटने को विवश कराती है
झुग्गी झोपड़ियों आलीशान इमारत

बाढ़ की धार
आंखों के समक्ष
पलभर में खाक करके
जिंदगी में मौत और जिंदगी
दोनों को दिखलाती है
भीषण बाढ़ से बचने में
मानव को बाढ़
हर वर्ष सतर्कता बरतने की
वाणी दे जाती है ।
अनसुनी करता मानव
बाढ़ सबकुछ समेट ले जाती है

-ललित शर्मा ,डिब्रुगढ़ (असम)

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