हरी-भरी वसुंधरा वितान राग छेड़ती। समस्त भार सृष्टि का प्रबुध्द मात झेलती।। प्रभाव है विशुद्ध भेद व्योम आरती करे। दिनेश लौ प्रदीप दीप्त स्वागत पथी धरे।।
सुलोचना लगे सजी घुमावदार घाटियाँ। प्रवाह सिद्ध अम्बु की प्रसिद्ध है कहानियाँ।। सजी हुई है वल्लरी सजा रही प्रदेश में। धरा लगे वधू बनी लजा रही स्ववेश में।।
प्रभा खिली विहान में प्रतीति दिव्य अप्सरा। सुगीतिका सुना रही सु- राग बैन अक्षरा।। विहंग गीत गा रहे किलोल पुष्प मेखला। छनाक नाद में चली धरा दिखा रही कला।।
प्रचंड रूप में अना प्रतीत कालिका लगे। अशुद्ध कर्म मानवी सँवार मालिका लगे।। प्रमाद छोड़ भौतिकी सँवार लो सुभाग्य को। समाज सभ्य नींव पे खड़ा करो सुयाग्य को।।
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