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कल्पनाओं की दुनिया


बचपन से ही साथ पढ़ने के कारण रूपा और अमित दोनों में बहुत अधिक सहानुभूति थी। वे एक दूसरे को दिल की हर बात बताते। अमित इसे प्यार समझ बैठा, और हर पल वह उन्हीं कल्पनाओं में डूबा रहता।

रूपा पढ़ाई को प्राथमिकता देने के कारण आगे निकल गई। उसके चाहने वालों की संख्या भी बढ़ती गई। वह दफ्तर के एक अधिकारी से प्यार करने लगी। दोनों के रिश्ते की भनक ज्यों- ही अमित को मिली ,वह अदर से बिल्कुल टूट गया। उसका मानसिक संतुलन भी बिगड़ने लगा, जिस कारण,उसका साइकेट्रिस्ट से इलाज कराना जरूरी हो गया।

इलाज के दौरान उसे रूपा की चूड़ियों की आवाज छन- छन करती हुयी सुनायी पड़ने लगी।

पत्तों से ढका उसका शरीर नजर आने लगा। वह रूपा को वस्त्र हीन पाने के लिए हर प्रयास करता रहता। साथ ही कोई तीसरा व्यक्ति शिकारी के रूप में भाला- बरछा लिए उन दोनों के रिश्ते को काटते हुए आगे की ओर बढ़ता नजर आता ।

अमित की मानसिक स्थिति का मोआइना करके डॉक्टर साहब उसे समझाते हुए कहते--- --"-देखो, अमित!वह आदिमानव का समय था, तुम्हारे कल्पना में जो आकृति चल रही है। पहले भी स्त्री- पुरुष मे प्रेम था, पर वस्त्र -हीन होने के बावजूद भी दोनों ही एक दूसरे का पूरा सम्मान करते थे, लेकिन आज पूरे कपड़े भी पहनने के बावजूद, आदमी की सोच आदिमानव से भी बदतर हो चुकी है ।, वह हमेशा नग्न - कल्पनाओं में खोना चाहता है। वह अपनी ही नजरों में गिरता रहता है । प्यार तो दोनो की ताकत बननी चाहिए, कमजोरी नहीं ।तुम्हारी खुशी, रूपा की खुशी में होनी चाहिए। फिर तुम ऐसा क्यों सोचते हो? सच्चे प्रेम में पास होना जरूरी नहीं बल्कि साथ होना मायने रखता है ।

वह हर पल तुम्हारे साथ ही तो है। फिर गम क्यों ?

धीरे धीरे अमित सम्हलने लगा।

एक दिन वह डाक्टर साहब से बोल ही पडा- " आप सही कह रहे है,वह मेरे साथ है । वहीं मेरी जीवन की उपलब्धि भी है ।मैं उसी के यादों के साथ हमेशा खुश रखने का प्रयास करूँगा।

-डोली शाह
सल्तानी छोरा,जिला- हैलाकंदी,
असम-788162

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