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ऊहापोह (लघुकथा)


लगता है सुदर्शन बचपन में भी बहुत सुदर्शन लगते होंगे तब ही तो उनके माँ-बाप ने उनका नाम सुदर्शन रखा । समय के चक्र से उम्र बढ़ती गई पर सुन्दरता तनिक भी कम नहीं हुई । आज सुदर्शन एक अच्छे लेखक व कवि भी हैं । उनकी विद्वता के सभी कायल हैं । जब साहित्य की बात चले तो उनका नाम अवश्य लिया जाता ।

सुदर्शन जब भी फेसबुक पर अपनी रचनाएं डालते तो चौबीस घंटों में उन्हें एक दर्जन से ज्यादा कामेंट व इतने ही लाइक बड़ी मुश्किल से मिल पाते पर हाँ,वो जब कभी अपनी नयी फोटो डालते तो एक घंटे में लाइक/काॅमेंटों की शतकीय पारी लग जाती तो वो हमेशा सोचते ये कैसी विडम्बना है ? रचनाओं को लोग इतना पसंद क्यूँ नहीं करते, वनस्पत मेरी शक्ल के । दुखी होकर वो मन ही मन कहते काश, शक्ल से ज्यादा मेरी रचनाओं को लोग अगर पसंद करते तो मुझे और भी अच्छा लगता । हर बार इस ऊहापोह में लिखने बैठ जाते और सुदर्शन एक अच्छी रचना लिख डालते ।

-व्यग्र पाण्डे, गंगापुर सिटी, स.मा.(राज.)


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