जब कभी होगी हमारी बात भी।
याद रक्खी जायेंगी खिदमात भी।
हो गया है आदमी खुद गर्ज़ अब,
बेसबब करता नहीं हैं बात भी।
किस तरहसे आदमी जीवन जिये,
तय करें ये वक़्त औ हालात भी।
आज मौसम केअजब तेवर दिखे,
धूप भी है हो रही बरसात भी।
अश्क आँखों में भरे हैं इसलिए,
आज काबू में नहीं जज़्बात भी।
-हमीद कानपुरी, कानपुर (उ.प्र.)
0 टिप्पणियाँ