Subscribe Us

त्रिपदिक छंदों की आधुनिक कड़ी : बोल ज़मूरे बोल

समीक्षा- 

‘बोल ज़मूरे बोल’ डॉ उमेश महादोषी जी का जनक छंद में रचित 127 रचनाओं का अनूठा संग्रह है। महादोषी जी ने अपनी बात में लिखा है कि उन्हें जनक छंद लिखने की प्रेरणा डॉ ओमप्रकाश भाटिया अराज जी से मिली और यह पुस्तक उन्हीं को समर्पित है।

जनक छंद त्रिपदिक छंदों की आधुनिक कड़ी है। कहा जाता है कि कथासंसार पत्रिका ग़ाज़ियाबाद ने जनक छंद पर अपना विशेषांक प्रकाशित किया था। विद्वानों के अनुसार जनक छंद 64 रूपों में लिखा जा सकता है। जनक छंद में सृजन करना साधना और साधक का पर्यायवाची है।

जनक छंद के सृजनों में श्री उदयभानू हँस, चन्द्रसेन विराट, डॉ कुंवर बेचैन, शिवचरण अंशुमाली, त्रिलोक सिंह ठकुरेला, ब्रह्मदत्त गौतम, महावीर उत्तरांचली, श्यामानन्द सरस्वती, डॉ कृष्ण पाल गौतम जैसे अनेकोंनेक साधकों का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। आज उसी परम्परा में एक सशक्त हस्ताक्षर बनकर उभरे श्री उमेश महादोषी जी की दस्तक़ साहित्य जगत में गूँज रही है।

श्री महादोषी जी की साहित्य यात्रा लगभग 50 वर्ष से निरन्तर जारी है।वह सृजन के साथ साथ संपादक के रूप मे भी 1980 के दशक से सक्रिय हैं। लघुकथा क्षणिका, कविता समीक्षक संपादक सभी रूपों में उनकी प्रतिभा का साहित्य जगतमें विशेष स्थान रहा है।

आपका कविता संग्रह “हम चिलम पीते हैं" तथा क्षणिका संग्रह “आकाश में धरती नहीं है” बहुचर्चित रहे हैं। अविराम साहित्यिकी के यशस्वी संपादक उमेश महादोषी जी ने जब जनक छंद में अपनी कलम चलाई तो इसमें भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया।

जनक छंद क्या है, कितनी मात्राओं का है तथा अन्य विधान क्या है, इस पर चिंतन तथा विमर्श विद्वानों का कार्य है। परन्तु बोल जमूरे बोल मे सृजित रचनाओं को पढ़ने पर उनमें वर्णित सार रोचकता गेयता पाठक को बाँधने में समर्थ सक्षम है।

एक सामान्य पाठक के दृष्टिकोण से हमें जमूरे के बोल अन्तस तक प्रभावित करने में सफल रहे हैं।

बोल जमूरे बोल ना
दिखला कोई खेल तू
जीवन में रस घोल ना।
*
क़ौम वही है देश की
दुश्मन के ललकार दे
रक्षक हो परिवेश की।
*
सीमा पर सैनिक लड़ें
घर में जो ग़द्दार हैं
उनसे तो हम ही भिड़ें।
*
कैसी है ये वेदना
आँखों में आँसू नहीं
ना ही तन में चेतना।
*
खादी जीती किसलिए
चोर बनाकर आवरण
छुप पायें क्या इसलिए?

इस संग्रह की सभी रचनाएँ बहुत ही रोचक हैं। जो पाठक को पढ़ने को विवश करती हैं।
बोल जमूरे बोल साहित्य जगत में ध्रुव तारे सी अपना विशिष्ट स्थान बनाकर दैदिप्यमान होती रहेगी।
बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ...।
पुस्तक- बोल जमूरे बोल
कवि - उमेश महादोषी
          बरेली
प्रकाशक- लक्ष्मी प्रकाशन,दिल्ली
मूल्य 60/-₹

समीक्षक - डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
               मुजफ्फरनगर
        मो. - 8265821800

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ