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संबंधों की जमीन (लघुकथा)


शेखर अमेरिका में रह रहे अपने प्रिय मित्र सार्थक के पास अपनी पत्नी के साथ गया हुआ था । वहां पर्टियों के अलावा काम ही क्या था? पार्टी और घूमना फिरना बस। सार्थक ने अपने एक पालतू बंदे को शेखर के साथ कर दिया था ।
आज की पार्टी में सार्थक के मित्र तथा परिचित शामिल थे। सभी अपने-अपने जीवन के विशेष अनुभव साझा कर रहे थे और अपनी पहचान और दोस्ती की पतंग कुशलता के साथ ढील देते हुए ऊंची से ऊंची उड़ाने की कोशिश करते लग रहे थे। पार्टी में जितने पुरुष थे उतनी ही महिलाएं भी, क्योंकि यह कपल पार्टी थी। रिलेशन वाले युग्म हो या अजनबी ,पर जोड़े में ही थे सभी। बच्चों का तो ऐसी पार्टियों में कोई काम ही नहीं रहता और न ही वे आनना चाहते हैं।
सभी अपने-अपने घर से एक-एक स्पेशल डिश लेकर आए थे। महफिल अपने जमाल पर थी। शेखर को घर से आई कॉल को अटेंड करने के कारण बेमन बीच में ही उठाना पड़ा।
"हेलो ।हेलो। बेटा। सब ठीक तो है .न?"शेखर जैसे कुछ और सुनना भी नहीं चाह रहा था। वह आगे बोला --."अभी-.अभी दो घंटे पहले ही तो मैंने तुमसे बात की थी।"
बेटे ने. झल्लाते हुए कहा "पापा। आप हमें भी तो सुनिए न।
शेखर पार्टी का मजा छोड़कर बीच में उठ जाने के कारण बौखला रहा था। फिर भी सम्भलते हुए बेटे की बात सुनी
"आपके ऑस्ट्रेलिया वाले फ्रेंड मिस्टर तिवारी अपनी पत्नी के साथ अपने शहर आए हुए हैं ।"
"घर पर तो..."शेखर जैसे शायद;आने वाली मुसीबत से पहले कैसे उ बचा जाए? विचार में लग रहा था। असमंजस में में रहते हुए उसे आगे भी सुनना पड़ा- "पापा उनका फोन आया था। मैंने आपसे आपके बारे में बता दिया है हम लोगों से मिलने घर पर आ रहे हैं ।"
बीच में ही शेखर बोल पड़ा-"घर पररुकने के लिए ज्यादा आग्रह मत करना समझे ना।"
इतना कहकर शेखर ने मोबाइल बंद कर दिया। वह अपनी पत्नी की ओर देखते हुए बोला "पापा तो उनके यहां 20 दिन रहकर आए थे। है ना?"

-डॉ. चंद्रा सायता,इंदौर

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