कीर्ति मेहता 'कोमल'
नेह नीर
दूर तक
गहराई
तक
जाना
पड़ता है
सहना पड़ता है
समाज का
अपनों का
दिया
दुख और दर्द
चेहरे पर
मुस्कान रखकर
आसान है
बहुत
ईश्वर हो जाना
लेकिन बहुत
मुश्किल है
स्त्री का जीवन जी पाना
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