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हमीद कानपुरी
अब नहीं टोपी उछा ली जाएगी।
आह मुफलिस की न ख़ाली जाएगी।
हर जगह बन कर सवाली जाएगी।
अच्छी आदत जिसजगह जैसे मिले,
मुस्कुरा कर के उठा ली जाएगी।
गर हुकूमत टिक गयी कुछ और दिन,
दिन ब दिन होती निराली जाएगी!
रूठना आदत हसीं की है मगर,
पुर यकीं हूँ की मना ली जाएगी।
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