मनीषा प्रधान 'मन'
होली में कितनी उदासी है,
हर तरफ छायी खामोशी है
ना मृगन्द ताल है
ना रंग गुलाल है
खत्म बच्चों का कोलाहल है
रास्तों पर नहीं हलचल है
दिखावटी होड़ में
भागे जा रहा मनुष्य है
न चैन बसेरा है
न शांति का सरोकार है
गुम हुई होठों की मुस्कान
गायब बैठक से चार यार है
कोरोना के आक्रमण से
सूने हुए त्योहार है
ऑनलाइन है सब कुछ
सिमट गया संसार है।
कहॉ गुलाल की लालिमा है
कहॉ गुझियों का स्वाद है
ठंडाई की ठंडक गई
कोक का उन्माद है
जाम का हर तरफ खुमार है
पिचकारियॉ हुई बेकार है
आधुनिक डीजे पर
रैन डांस का प्रचार है
बदला त्योहार नहीं
बदल गया संसार है
हर तरफ छायी खामोशी है
ना मृगन्द ताल है
ना रंग गुलाल है
खत्म बच्चों का कोलाहल है
रास्तों पर नहीं हलचल है
दिखावटी होड़ में
भागे जा रहा मनुष्य है
न चैन बसेरा है
न शांति का सरोकार है
गुम हुई होठों की मुस्कान
गायब बैठक से चार यार है
कोरोना के आक्रमण से
सूने हुए त्योहार है
ऑनलाइन है सब कुछ
सिमट गया संसार है।
कहॉ गुलाल की लालिमा है
कहॉ गुझियों का स्वाद है
ठंडाई की ठंडक गई
कोक का उन्माद है
जाम का हर तरफ खुमार है
पिचकारियॉ हुई बेकार है
आधुनिक डीजे पर
रैन डांस का प्रचार है
बदला त्योहार नहीं
बदल गया संसार है
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