डा०रघुनाथ मिश्र 'सहज' |
छुटपन में डेढ़ वर्ष की आयु में मां और तेरह वर्ष की आयु में पिता का साया सर से हमेशा के लिए उठ गया।तब उनकी कमी हमेशा मन में चुभती रहती थी।बड़ा होना भी दुश्वार और अस्तित्व तक संकट में।लेकिन बड़ों की नसीहतों ने संतुलन में रहने -जीने की तरकीबें सिखाईं,जिनके प्रतिफल के रूप में, तमाम कठिन -विपरीत परिस्थितियों में पढ़ाई का दामन नहीं छोड़ा।ताने-छींटाकशी ने आत्महत्या तक के लिए उकसाया। हमारे गुरुदेव ने हर हाल में खुश रहने और समय के साथ स्वयं को सकारात्मक दिशा में बदलने और संतुलित जीवन जीने की शिक्षा से लैस किया।
मन तो अपना काम करेगा क्यों कि उसकी आदत ही दिल के विरुद्ध चलने और अपनी मनवाने की है।आगरा की सेठ गली के भल्ले ( आलू की टिक्की) मशहूर हुआ करते थे।बात 1972-73 की है।रात में 12.00 बजे चल दिए भल्ले खाने।बिजली घर चौराहे पर कुत्तों ने घेर लिया।मुश्किल से जान बचाई और मन मार कर वापस लौटा।वह घटना आज भी याद है।काश उस समय इतनी समझ होती कि, मन की जगह दिल की सुन लेता तो ऐसा नहीं होता। क्योंकि दिल कभी गुमराह नहीं करता।
जब कोई रास्ता,किसी मसले पर न सूझे तो उसे दिल को सौंप देना बेहतर होता है।महापुरुषों ने दिल के बारे में कहा भी है,"IT MAY BE IN LEFT, BUT IT'S ALWAYS RIGHT" हमारी अनेक निजी बातें ऐसी होती हैं, जिन्हें किसी से कह कर हल्के होने की हिम्मत नहीं होती।ऐसी सोच लेकिन क्यों रखें जो हमें दुख दे।यदि कुछ बुरा हुआ है तो भूल जायें।
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