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यहाँ आना मना है


पुनीता भारद्वाज

वह नूर - ए संगमरमर
तराशा हुआ हीरा
ज़ौहरी ने लगा दी कीमत
सरे बाज़ार
दिन रात करती वह
इंतज़ार अपने खरीददार का
इसी से गुलज़ार थीं
ज़श्ने बाज़ार की गलियाँ
रोज़ ही तशरीफ लाते
शहर - ए - सुल्तान , ख़ैरख्वाह
किन्तु आज अमावस ने उंडेल दी
काली स्याही
और डाल दिया
कोहिनूर को कैद कोठरी में
प्रश्न ज़हन में शहतीर बनकर चुभा
क्या अब फिर नहीं तराशेंगे
जौहरी कोहिनूर?
फैला रहेगा उन गलियों में
वही सन्नाटा
पर शायद नहीं ...
चलता रहेगा यह सिलसिला
कभी न खत्म होने वाला
मुसलसल...
लगातार

(यह रचना रेड लाइट एरिया की महिलाओं की कथा व्यथा पर केन्द्रित है)

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