
प्रेम पथिक
लोग खेलने लग गए है आग से
सौ गुनाह कम है बेशर्म के लिए
मर जाता है शरीफ एक दाग से
इस काबिल तो नही लगता है वो
छीका टूट गया बिल्ली के भाग से
माना हजार ऐब उसमें छुपी हुई
सीखो चतुराई का हुनर काग से
जहर देकर किसी ने मारा होगा
उसके मुँह से आ रहे है झाग से
अब कहाँ उस्ताद कहाँ शागिर्द वैसे
इन दीपकों को जो जला दें राग से
अंधेरे में ये सोचकर रहने लगा हूँ
कहीं घर जल न जाए चिराग से
न वो दोस्त न वो रंग न वो गालियां
पथिक बताओ कैसे खेलूं फाग से
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