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जब से हुआ है प्रेम खुद से

डॉ. नीता कुमारी

जब से हुआ है प्रेम खुद से,
स्वयं जीने का आधार हुई हूँ
कोई गम अब नहीं सताता मुझको
हर जख्म का खुद ही उपचार हुई हूँ
ख्वाहिश नहीं रही अब कि कोई दिल से चाहे
खुद से खुद की चाहत को बेकरार हुई हूँ
जब से हुआ है
परवाह नहीं कुछ भी कहे दुनिया अब तो
हर सोच से परे मैं क्षितिज के पार हुई हूँ
कोई लहर अब उठती नहीं मन में
खुद ही नैया,खुद ही पतवार हुई हूँ
जब से हुआ है
सुकून था मेरे अंदर,कभी हमने जाना नहीं
खुद से ही खुद को मिलाकर खुशियों की बहार हुई हूँ
नहीं कोई खिलौना मैं कि कोई चाभी से चला ले
जिंदगी ये मेरी है, स्वयं इसकी पहरेदार हुई हूँ
जब से हुआ है

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