बीना रॉय
हयात से ही दर्द है दर्द में हयात है,
ख़ुदा के सिवा कौन यहां किसके साथ है।
हुए जब से रिहा सदा के लिए तेरे बाहों के घेरे से,
हादसों में रिहाई के गिरफ्त मेरे जज्बात है।
मेरी आंखों की मस्ती के तो मुश्ताक़ हैं कई,
नजर उस पर ही दायम क्यों जिसने लूटी निशात है।
हमें तनहा हुए तेरे बाद मुद्दतें हो गईं,
तू नहीं तो हरदम संग यादों की बारात है।
जब तू ही नहीं मेरा तो मैं बदी करूं किसकी,
अब फ़ज़ूल तेरे बिन खुशियों के बरसात है।
खूबी ख़ल्क़ की एक बड़ी अजीब देखिए ,
सच को है तलाशता मारता भी लात है।
भर लो घर यहां का तुम किसी की छीनकर खुशियां,
मगर जाना खुदा के घर सबको ही खाली हाथ है।
हमारी नेक नियत से जमाना बेखबर जो है,
ख़ुदा सब कुछ है देखता यही तस्कीं की बात है।
(हयात-ज़िंदगी, मुश्ताक़- अभिलाषी, दायम- स्थिर,
बदी-गुरुर, तस्कीं-तसल्ली ख़ल्क़- दुनिया)
0 टिप्पणियाँ