डॉ अ कीर्तिवर्धन
पिता दामोदर सावरकर से, क्रान्ति की शिक्षा पायी।
राष्ट्र हितों में इतिहास रचा, सबसे आगे रहते,
अट्ठारह सौ तिरासी में जन्मे, विनायक मंझले भाई।
हरि चापेकर क्रांतिकारी ने, जब फाँसी फन्दा चूमा,
तेरह वर्षीय विनायक ने तब, बदले की कसमें खायी।
सावरकर ने अंग्रेजों से, स्वतंत्रता की माँग उठाकर
विदेशी वस्त्रों की होली, प्रथम उसने ही जलवाई।
दामोदर से घबरा अंग्रेजों ने, विद्यालय से हटवाया,
पढने का ले लिया संकल्प, फिर बैरिस्टर डिग्री पायी।
'क्रान्तिकारी आन्दोलन' से, ब्रिटिश शासन घबराया,
'इंडिया हाऊस' को सावरकर ने, तीर्थ पहचान दिलाई।
तेईस वर्ष की अवस्था तक, पंद्रह सौ ग्रंथ पढ डाले,
अण्डमान के पत्थरों पर भी, क्रान्ति अलख जगाई।
अखण्ड भारत का पक्षधर था, विनायक सावरकर,
जिसकी रग रग में भारत और आजादी जिसकी माई।
कोल्हू में पेला जिसको, दो जन्मों का कारावास मिला,
तिरासी वर्ष की आयु में, प्रभु चरणों में जगह बनाई।
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