राजकुमार जैन राजन |
जब हम नाराज़गी, शिकायत और किसी के प्रति शत्रुता की भावना रखते हैं, तो ये भावनाएं एड्रेनालाईन और कोर्टिसोल जैसे हार्मोन जारी करती है। इन हार्मोन का हृदय और प्रतिरक्षा प्रणाली पर प्रभाव पड़ता है जिससे चिड़चिड़ापन पनपता है और व्यक्ति हृदय रोगों, दिल के दौरों तथा स्ट्रोक जैसी बीमारियों का शिकार होना शुरू हो जाता है, दूसरी ओर, हम क्षमा करते हैं और निर्णय और दोष का बोझ छोड़ देते हैं, तो सब कुछ शांत हो जाता है। इसके लिए एक प्रयोग किया जा सकता है, उन व्यक्तियों की सूची बनाएं जिन्होंने आपको या आपने किसी भी कारण से उनको चोट पहुंचाई है, शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक या व्यावसायिक रूप से पीड़ित हुए हैं। अब आप यह प्रयास करें कि उनसे क्षमा मांग लें, या क्षमा प्रदान करदें। इससे एक दूसरे के मन में पल रहे नकारात्मक विचार खत्म हो जाएंगे और सारे सम्बन्ध मधुर बन जाएंगे। आज की युवापीढ़ी आसानी से न अपनी भूल स्वीकार कर पाती है न किसी की गलती को आसानी से भूल पाती है। उनकी यह सोच बनी हुई है कि भूल स्वीकार करने से हमारा आत्म सम्मान प्रभावित होगा। हमें नीचा देखना पड़ेगा। सामने वाले ने गलती की है तो हम अकेले ही अपनी भूल को क्यों स्वीकार करें। पर उनको यह ज्ञात नहीं कि भूल स्वीकार करने वाला छोटा नहीं महान होता है, इसीलिए क्षमा को वीरों का आभूषण कहा गया है-'क्षमा वीरस्य भूषणम'।
दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति व नोबल शांति पुरस्कार विजेता नेल्सन मंडेला कहा करते थे, 'हमारे मन में क्षमा का बीज बोने का काम बचपन से ही शुरू होना चाहिए। परिवार ही वह पहला स्कूल है, जहाँ इसकी शिक्षा दी जा सकती है'। जैन संस्कृति तो क्षमा प्रधान ही रही है, इसलिए 'क्षमा याचना' को एक पर्व, एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है। वैसे तो जब भी हमसे भूल हो, कटुता के भाव आये उसी समय क्षमा याचना कर मन को हल्का कर लेना चाहिए। इसका बदला रूप 'सॉरी' बोलना भी है। यदि छोटा बच्चा कोई गलती करता है तो तुरन्त उससे 'सॉरी' बोलने को कहा जाता है अथवा किसी से कोई गलती हो जाती है तो तुरन्त 'सॉरी' बोल देता है। और झगड़ा खत्म। बचपन में एक कहानी पढ़ी थी, हज़रत मोहम्मद साहब के बारे में। वे जब भी एक गली से गुजरते थे, तो वहां रहने वाली एक महिला उन्हें गालियां देती थीं, घर का कचरा उनपर फैंक देती थी। मोहम्मद साहब ने उस महिला को कभी जवाब नहीं दिया। एक दिन जब वे उस गली से गुजरे तो उस महिला की न गालियां सुनाई दी न कचरा उन पर फैंका गया। मोहम्मद साहब तुरन्त उस महिला के घर में पहुंचे। देखा, वह बीमार है और अकेली है। मोहम्मद साहब ने उसकी खूब सेवा की। ठीक होने पर महिला ने दोनों हाथ जोड़कर अपने किये के लिए क्षमा मांगी। मोहम्मद साहब ने कहा, मैंने तो तुम्हें कब का माफ कर दिया था, पर तुम तक वह माफी पहुंची अब है। दरअसल किसी को क्षमा करने के लिए अपने दुःख, अपने अहंकार और अपने क्रोध पर काबू पाना बहुत जरूरी होता है। गलती करने वाला भी तब तक सहता है जब तक आप उसे क्षमा नहीं कर देते।
क्षमा मांग कर हम खुद का बोझ उतारते हैं, वहीं किसी को क्षमा करके दोनों का मन निर्मल करते हैं। छोटी छोटी बातों के लिए मन में बैर क्यों रखें ? कई बार हमें पता होता है कि कब हमने किसी का दिल दुखाया है, पर हमारा अहंकार हमें क्षमा मांगने की इजाज़त नहीं देता। और जब कोई हमसे क्षमा मांगता है तब अचानक लगता है कि जाने हम कितने महान हैं जो यह हमसे क्षमा मांग रहा है। मैंने स्वयं अनुभव किया है कि सच्चे हृदय से क्षमा मांग लेने एवं देने से मन मे जो शांति, निर्मलता व आनन्द का भाव आता है, वह अवर्णनीय है। वर्षों के अवरोध या रिश्तों में आई दरारें पल भर में मिट जाती है और जीवन तनाव मुक्त हो जाता है। यह निश्चित बात है कि अपनी गलती के लिए क्षमा मांगने के लिए हमारा एक कदम उठता है तो सामने वाले व्यक्ति के दो कदम स्वतः उठ जाते हैं। अपेक्षा एक ही है कि हमसे भूल हो जाने पर हमारे मन में क्षमा की भावना विकसित हो।*
● राजकुमार जैन राजन
3 टिप्पणियाँ
क्षमा जैसी पवित्र और सुंदर भावना पर लिखा बेहतरीन आलेख। हम सभी को इस लेख में लिखी बातों को अपने जीवन में उतारने की कोशिश करनी चाहिए।
जवाब देंहटाएंबहुत बधाई आपको आदरणीय 💐💐💐💐
बेहद महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील आलेख! अपन जीवन को अति-उत्तम बनाने की राह में 'क्षमा' दया , माया की बहुत जरूरत है। आपको बहुत बहुत बधाई सर 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत ही शिक्षाप्रद और मनन योग्य लेख। व्यक्ति यदि क्षमा करना सीख जाए और गलती करने वाला भी अपने व्यवहार का अवलोकन करें ,तो क्षमा मांग कर अपराध बोध से बच सकता है।वाकई क्षमा शीलता ऐसा गुण है जो क्षमा मांगने वाले और क्षमा करने वाले दोनों की ही मन को हल्का और शुद्ध करती है।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लेख के लिए आदरणीय, आपको बहुत-बहुत बधाई और साधुवाद 💐💐🙏