बीना राय |
सारी उमर रुला के
सज़दे में बैठकर
अब क्यों तुम
सुकून मांगते हो ख़ुदा से
चराग सारे बुझ गए
ख्वाबों के घर उजड़ गए हैं
दीया चाहतों का कैसे एक
ना बुझा किसी भी हवा से
बिखर बिखर के फिर संवरे
हंसी माझी से जब गुजरे
लम्हों में चंद कभी मुझे
था ना आज तेरी वफा पे
मैं खुदा के शुक्र अदा करूं
तेरे लिए भी दुआ करूं
आदत मेरी अजीब ये
ना छूटे किसी दरमा से
*दरमा - इलाज़
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