अलका 'सोनी' |
फेंकी हुई रोटियां
बयां कर रही है कि
भूख मिट चुकी है
किसी की
तृप्त और संतृप्त
हो चुका है कोई
जरूरत नहीं रही
अब उसे इस
साक्षात परमेश्वर की
वह पा चुका है वरदान
ऐश्वर्य और संपन्नता का
रोटी महज
एक व्यंजन है
भर है उसके लिए
जो बढ़ाती है शोभा
उसके नाना प्रकार के
पकवान से सजे
थाल का
काश कि इसे
फेंकने से पहले
देख पाता वह
किसी गरीब का घर
जहां एक अदद रोटी को
तरस कर भूखा ही
सो चुका है कोई
दिनभर हाड़ तोड़
मेहनत करके भी
जो जुटा नहीं पाता
निवाला दो वक्त का….
2 टिप्पणियाँ
सुंदर, सार्थक, उम्दा कविता। मानवीयता की पराकाष्ठा हद हो गई है। संवेदनहीन हो रहा है आज का मानव।
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई
*राजकुमार जैन राजन
हार्दिक आभार आपका आदरणीय.. 🙏🙏
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