राज जौनपुरी
चाहत में कौन रखता कदम देख-भाल के
फुरक़त ही मिलती देखिये एवज़ विसाल के
दिल में दबा के दर्द हँसी बाँटता हूँ मैं
आते नहीं सलीके मुझे अर्ज़े-हाल के
हमनें बसा के दिल में इबादत की आपकी
क्या आपको मिला मेरी इज्ज़त उछाल के
खुद को मिटा दिया हूँ मैं चाहत में आपके
मुझको न अब है फ़िक्र उरूजो-ज़वाल के
कोशिश बहुत तो की तुम्हें कर दूं मैं मुतमइन
मिलते न पर जवाब हैं सारे सवाल के
बर्बाद ज़िन्दगी हुई अब और क्या कहूँ
लूटा है उसने इश्क़ के शीशे में ढाल के
इक बार जो पढ़ा वो दिवाना ही हो गया
कहते हैं 'राज' आप भी ग़ज़लें कमाल के
*****************************
कैसा हसीं ख़याल ये तन्हाइयों में है
दिखता है उनका अक्स ही परछाइयों में है
होशोहवाश खो न दे जो देख ले तुझे
क़ातिल सी इक अदा तेरी अँगड़ाइयों में है
हमनें कमान मुल्क की है सौंप दी उन्हें
होता शुमार नाम जो दंगाइयों में है
माँ-बाप के गुजरते ही बच्चे यूँ लड़ पड़े
मुद्दत की दुश्मनी कोई अँगनाइयों में है
धोखा फ़रेब झूठ से दुनिया ये चल रही
अब 'राज' कुुुछ बचा नहीं अच्छाइयों में है
0 टिप्पणियाँ