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शर्मसार करता बॉम्बे हाईकोर्ट का ये फ़ैसला

भावना ठाकर
या तो पुष्पा गानेड़ीवाला पागल है या तो मनोरोगी, वरना एक प्रताड़ित लड़की के हक में सकारात्मक फैसला देने की बजाय स्त्री जाति को आहत करने वाला फैसला हरगिज़ ना देती। ये तो वही बात हुई कि मर्दों आगे बढ़ो पूरी छूट है आपको, कपड़े से ढ़की लड़कियों पर आपका पूरा-पूरा हक है, उनके किसी भी अंग के साथ खेलो, खुद न्यायधीश ने ये हक दिया है आपको। डरो मत ये क्रिया सहज है बिलकुल बलात्कार या शारीरिक शोषण नहीं माना जाएगा, न ही कोई सज़ा होगी। 
मन तो करता है ऐसी मानसिकता वाली जज को सरे राह चौराहे पर खड़ी करके पाँच दरिंदों के हाथों सौंप दिया जाए, ये कहकर की खेलो आपके ही बाप का माल है। तब जाकर उस पीड़ा का भान होगा उस जज साहिबा को जो ऐसे बेतुके जजमेन्ट से पूरी औरत ज़ात को शर्मसार कर रही है।
बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने एक फैसला सुनाया है, जिसके मुताबिक़ सिर्फ ग्रोपिंग किसी की इच्‍छा के विरुद्ध कामुकता से स्‍पर्श करने को यौन शोषण नहीं माना जा सकता है। what the hell is this तो क्या यौन शोषण के लिए अब लड़कीयाँ कपड़े उतारकर खुद निमंत्रण दें की लो अब ये गुनाह कहलाएगा। पहरन के अंदर हाथ ड़ालकर आप मेरे अंगों से खेलो, दबाओ, शोषण करो तभी मैं आप पर केस कर पाऊँगी। 
कोर्ट के मुताबिक इसके लिए शारीरिक संपर्क या ‘यौन शोषण के इरादे से किया गया शरीर से शरीर का स्पर्श’ स्किन टू स्किन होना चाहिए। सलाम है ऐसी सोच को अरे किसी गैरतमंद लड़की को जब कोई गंदी नज़र से देखता भी है तो बलात्कार वाली फीलिंग होती है। और राह चलते, बस में, ट्रेन में या कहीं भी कोई गलत इरादे से छूता है तब मन करता है मार दूँ या मर जाऊं। ऐसा जजमेन्ट तो दरिंदों को खुली छूट देने वाला है की तन ढ़की लड़की आपकी प्रॉपर्टी है लगे रहो भैया।
जिसे एक नाबालिग लड़की के साथ यौन शोषण करने लिए जेल की सज़ा सुनाई गई थी। हाईकोर्ट के मुताबिक सिर्फ नाबालिग लड़की की छाती को छूना यौन शोषण की श्रेणी में नहीं आता। पुष्पा गानेड़ीवाला ने कहा कि अगर आरोपी ने ज़्यादती के इरादे से शारीरिक संपर्क के ज़रिए पीड़िता के कपड़े उतारे होते या उसके अंडरगारमेंट्स में हाथ डालने का प्रयास किया होता, तब इसकी श्रेणी शारीरिक शोषण कहलाएगा। थू है ऐसी सोच पर।
सुनवाई के दौरान जज ने ज़िक्र किया कि पॉक्सो एक्ट के तहत ज़्यादती तब होती है, जब एक व्यक्ति किसीका गुप्तांग छूने का प्रयास करता है या उसे अपना गुप्तांग छूने के लिए मजबूर करता है। जस्टिस पुष्पा के मुताबिक़ ये शारीरिक शोषण का मामला नहीं है क्योंकि आरोपी ने पीड़िता का टॉप नहीं हटाया और उसके स्तन दबाए। इस मामले में किसी भी तरह का सीधा शारीरिक संपर्क नहीं हुआ है। मिसाल के तौर पर शोषण के इरादे से किया गया शरीर से शरीर का संपर्क ही शारीरिक शोषण कहलाता है।
इसके अलावा जज ने कहा, 12 वर्ष की लड़की का स्तन दबाया गया है। पर इसकी जानकारी नहीं है कि आरोपी ने उसका टॉप हटाया था या नहीं? ना ही यह पक्का है कि उसने टॉप के अंदर हाथ डाल कर स्तन दबाया था।
सुना तो था कि औरत ही औरत की दुश्मन होती है, आज देख भी लिया। अरे हम कहीं पढ़ते या सुनते भी है ऐसे हादसों के बारे में तो खून खौल उठता है। चार मास की मासूम बच्चीयों से लेकर 60 साल की महिला तक को किसी न किसी क्रिया के द्वारा शारीरिक शोषण का भोग बनते हुए। लड़की या औरत को गंदी नियत से देखना, निम्न और वल्गर शब्दों से कमेन्ट देना, राह चलते छेड़ना, जानबूझकर गुप्तांगों को छूना या दबाना उसी श्रेणी में आता है जो किसीकी इच्छा विरुद्ध कपड़े फ़ाड़कर बलात्कार करना। ये सारी क्रियाएं एक लड़की को बलात्कार के समान ही पीड़ा दे जाती है। 
सारे समाज से निवेदन है की पुष्पा गानेड़ीवाला के शर्मसार फैसले के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई जाए, वरना कल किसीकी भी बेटी कहीं भी सुरक्षित नहीं रहेगी। राह चलते कोई भी भेड़िया लड़की के किसी भी अंग के साथ ख़िलवाड़ करके निकल जाएगा और आप ना उस पर इल्ज़ाम लगा सकते है ना केस कर सकते है। इससे बेहतर है ऐसी जज साहिबा के लिए आम जनता ही फैसला सुना दें।

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