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प्रीति करो प्रीति मिले

डॉ. रघुनाथ मिश्र 'सहज'

प्रीति करो प्रीति मिले,खुशियों के फूल खिले।
भाईचारा खूब बढ़े, आनंद अनंत है।

परिवार जग सारा,भेदभाव ने है मारा।
लोभ-लालच का कोई,आदि है न अंत है।

सुख बाँटने से बढ़े, घमंड का नशा चढ़े।
दिखावा है सारहीन, बस गजदंत है।

जो भी मिला हमें आज,कोढ़ में नहीं वो खाज।
परिश्रम का वो फल, कामगार संत है।

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