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हां लाजवाब हूं मैं

                   *प्रेम बजाज
जीते रहे अब तक सब के लिए, सोचा ना कभी अपना,
आज खुद के लिए जी ले थोड़ी अपनी भी प्रसंशा कर लें।
जीते सब के लिए बहुत थोड़ा अपने लिए भी जी लें,
पहनाए सबको तारीफों के कम्बल अपना वितान भी तो सी लें।
फलक का सितारा हूं मैं,सागर का किनारा हूं मैं,
मेह-नेह बरसाए जो सभी पर, वो बादल आवारा हूं मैं।
एक खुली किताब हूं मैं,पिया की हर सांस का हिसाब हूं मैं,
जिस का ना हो कोई जवाब ,वो शय लाजवाब हूं मैं
हुस्न की मल्लिका हूं, इश्क का समन्दर हूं,
दिलों में मचा दे जो खलबली ऐसा बवंडर हूं
देखे जो मुझको हो जाए मदहोश पानी को भी मय बना दूं,
ऐसा अंगूर का दाना हूं मैं।
पढ़ने वाला हो जाए दीवाना ऐसी एक ग़ज़ल हूं मैं,
मुझे नहीं ज़रुरत श्रृंगार की सादगी में भी ग़ज़ब हूं मैं।
देख नजाकत मेरी लाखों मेरे ग़ुलाम हो जाएं, आंखें
नहीं प्याले है मय के, जो देखे डूब के फ़ना हो जाए।
ये जो महक है इत्र की ये मेरे हुस्न की शराब है, देखें जब कोई मुझे
तो लिख दे आसमां पे ग़ज़ल ऐसा मेरा रूप माहताब है।
जुल्फें है काली घटा सी, लहराऊं तो बिन बदल बरसात हो जाए,
मिलता है आशिकों को सुकून मेरी पनाह में आकर, हम जहां रख
दे कदम वहां महफ़िल सज जाए।
छु लूं पानी को तो उसे मय बना दूं, 
ठंडी शीतल बयार में भी आग लगा दूं।
भड़का दूं सीने में आग वो शबाब हूं मैं , 
लाजवाब हूं मैं, हां लाजवाब हूं मैं ।

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