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एक पत्र ऐसा

प्रीति शर्मा 'असीम',नालागढ़




















पत्र जो लिखा,
मगर भेजा नहीं।
जिंदगी के सच को ,
सहजता से सहेजा ।
मगर भेजा नहीं।।

पत्र जो लिखा ,
मगर भेजा नहीं।
कागज पर,
शब्दों के दर्द को उकेरा।
विचारों के,
उतार -चढ़ाव को खदेड़ा।।

शायद..............
इसीलिए ही भेजा नहीँ।
पत्र जो लिखा ,
मगर भेजा नहीँ।।

बहुत सोचा.........
उस सोच तक ,
जब तुमने सोचा ही नहीँ।

बहुत देखा........
उस नजर से ,
जब तुम ने देखा ही नहीँ।।

शायद..........
इसीलिए भेजा ही नहीँ।
पत्र जो लिखा,
मगर भेजा नहीँ।

खुली किताब था,
जिसे जहन तक ,
अपने तुमने खींचा ही नहीँ।

फिर लगा.....
देकर पत्र ,
कहीं दूर निकल जाऊंगा।

अपने प्यार को ,
समझाने के लिए ,
एक उम्र नही लगाऊंगा।।

मुझे नही समझें।
फिर अगर.....
शब्द भी न समझें।
तो कैसे फिर समझाऊंगा।।

यह सोच कर नही दे पाऊंगा ।
पत्र तो लिखा मगर भेजा नही।

उम्मीद की रोशनी में,
शब्दों का सफर रोका नहीँ।।
पत्र तो लिखा ,
मगर भेजा नहीँ।।
 

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