माना दिल को बहुत सताए उसकी याद दिसम्बर में |
गर्म रजाई सी लगती पर उसकी याद दिसम्बर में |
सर्द हवाएं , कोहरा , पाला अपना रंग जमाते जब,
कडक चाय सी लगती तब उसकी याद दिसम्बर में |
जब सबसे आँख मिलाती घूमे सर्दी चंचल बाला सी,
मई जून सी लगती तब उसकी याद दिसम्बर में |
महबूब गले से लिपट लिपट बोसे पर बोसा देता हो,
अरमान हों पूरे सब जिसके वह आबाद दिसम्बर में |
जिनका ओढ़न आसमान है और बिछावन धरती है,
ठिठुरन की चादर में लिपटा वह बर्बाद दिसम्बर में |
थर-थर कांपे तन उसका बोल न मुंह से फूट रहा,
बूढी माँ की कौन सुने अब फरियाद दिसम्बर में |
बतकही करें संग ताप-ताप,चुन्नू के कोइरे परअहमद,
दर्द भी पूछे एक दूजे का कहाँ वो बात दिसम्बर में|
*कोइरा = अलाव
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